श्री राधारमणो विजयते
सर्प में एक बहुत बड़ी प्रतिभा होती है सर्प व्यक्ति के मन को पढ़ना जानता है। इसलिए जिसकी अन्तसचेतना में परमात्मा का उदय हो गया है जिसमें ज्ञान का उदय हो गया है सर्प उनके साथ मैत्री करता है। उनके विरोध में नहीं रहता। वो भय का स्वरूप नहीं है अगर आपके अंतःकरण में मन पवित्र है तो सर्प आपसे मित्रता कर लेता है। ये उसमें इतनी प्रतिभा है सर्प आपके मन को पढ़ना जानता है। वो आँखों से आपके मन के स्पन्दन को पकड़ लेता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The serpents have the potent quality of reading the human mind. That’s why, the serpents don’t disturb the self-realized or a Divine soul! It does not bother them, in other words has a friendly disposition towards them. If your heart is pure then there is nothing to fear the snake! Because, by nature, they are good readers of the human mind! Looking into the eyes, it catches the vibrations of the heart!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
सर्पस्य महती प्रतिभा अस्ति; मनुष्यस्य मनः पठितुं जानाति। अतः सर्पः मित्रतां करोति येषां अन्तःकरणे ईश्वरः उद्भूतः, येषु ज्ञानं उद्भूतम्। तेषां विरुद्धं न तिष्ठति। न भयरूपं, यदि ते हृदयं शुद्धं तर्हि सर्पः त्वया सह मित्रतां करोति। सर्पस्य तादृशी प्रतिभा अस्ति यत् सः भवतः मनः पठितुं जानाति। सः भवतः मनसः स्पन्दनं नेत्रेण गृह्णाति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।