श्री राधारमणो विजयते
निराभिमानी होना एक अलग बात है। निराभिमानी होना एक गुड करैक्टर है। अच्छी बात है। किसी भी विषय में अगर आप अभिमान पाल लेंगे तो आप विकास कैसे कर पाएंगे?
‘जो मैं कह रहा हूंँ वही बिल्कुल ठीक है’; ऐसा व्यक्ति कहाँ अग्रसर हो पाएगा? आप मेरी बात को मेरी तरह से सुनो; कोई व्यक्ति प्रश्न कर रहा है तो वह प्रश्न करने पर भी सामने वाले से उत्तर अपनी अपेक्षा की चाह रहा है; इसको अभिमान कहते हैं।
किसी ने मुझसे पूछा- महाराज जी! भजन कब करें? मैंने कही- सवेरे कर ले। वह बोला- नहीं, आप तो ऐसा कहो कि मैं शाम को कर लूँ। मैंने कहीं भैया मैं क्यों कहूँ? तो बोला- देखिए भक्तमाल में यह चार कथाएं हैं। अच्छा तो भैया इतना ही विद्वान हो तो किसी और का समय क्यों खराब कर रहे हो?
श्रीकृष्ण कह रहे हैं- निरऽहंकारः॥ हम अभिमानी ना हों, यह गुड करैक्टर की बात है। पर हम निरअहंकारी हों, यह कॉन्शसनेस की बात है।
जीवेर स्वरूपे होय नित्य कृष्णदास॥
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Being humble or modest is an entirely different thing. Humility is a sign of a good character. It is very good! If you harbour ego about anything then how will you progress?
Whatever I say is the right thing; such an individual will not be able to progress! You listen and interpret it the way I intend you to; if a question is asked, he expects the answer in line to what he wants; this is what is called ego.
I was asked, Maharajji! When should we do Bhajan? I said, in the morning! To which he said, I will do it in the evening. Now, why will I say so? He then says, See; the Bhaktmaal has these four Kathas. Now, if you are so knowledgeable then why are you wasting some one else’s time?
Shree Krishna is saying- ‘Nirahankaaraha:’|| We should not be egoistic, this denotes good character. But to be ‘Nirhankaari’, is connected to consciousness. ‘Jeever swaroopey hoya nitya Krishna das ‘||
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
अनादरः इति भिन्नं वस्तु। निःस्वार्थत्वं सत्चरितम् अस्ति। साधु वस्तु अस्ति। यदि भवतः कस्मिन् अपि विषये गौरवः अस्ति तर्हि भवतः प्रगतिः कथं भविष्यति ?
‘यत् अहं वदामि तत् सर्वथा सम्यक्’; एतादृशः व्यक्तिः कुत्र प्रगतिम् कर्तुं शक्नोति ? त्वं मम मार्गं शृणोषि; यदि कश्चन व्यक्तिः प्रश्नं पृच्छति तर्हि प्रश्नं पृष्ट्वा अपि सः परस्मात् उत्तरम् अपेक्षते; अयम् अभिमान उच्यते।
कश्चित् मां पृष्टवान्- महाराज जी! कदा भजनं कर्तव्यम् ? अहं अवदम्- प्रातः कुरु। सः अवदत्- न, त्वं मां सायंकाले कर्तुं वदसि। मया उक्तं भ्राता, किमर्थं वदामि? अतः सः अवदत्- पश्य भक्तमाले एताः चत्वारः कथाः सन्ति। साधु भ्राता यदि भवान् एतादृशः विद्वान् अस्ति तर्हि अन्यस्य समयं किमर्थं अपव्ययसि ?
श्री कृष्णः कथयति- निर्ऋहंकारः। अस्माभिः अभिमानः न कर्तव्यः, सद्शीलस्य विषयः अस्ति। परन्तु अहङ्कारहीनाः भवेयुः, चैतन्यस्य विषयः अस्ति।
नित्यकृष्णदासः जीवनस्य मूर्तरूपः अस्ति।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा: ॥