श्री राधारमणो विजयते
माखन चोरी के बाद श्रीयशोदा श्रीठाकुरजी को बाँधने का प्रयास करती हैं पूरे ब्रज की रस्सी आ गई पर सारी रस्सी दो उँगुल छोटी। अगर वो दो उँगल पूरे हो जाते तो अबद्ध ब्रह्म बद्ध हो जाता।
ये दो अँगुल क्या है ??
जो भजन में संसिद्ध भगवान हैं वो कैसे मिलेंगे वो कैसे बँधेंगे ?
बस ये दो उँगल की ही कमी है। एक हमारा प्रयास और दूसरा उनकी कृपा।।
भगवान कैसे मिलेंगे ??
कठोपनिषद् का सूत्र कहता है वो प्रवचनों से मिलने वाला नहीं है न बुद्धिमान होने से मिलेगा बहुत ज्यादा सुनने से भी मिलने वाला नहीं है कैसे मिलेगा जब तक वो नहीं चाहेगा कि मैं मिलूँ तब तक किसी को नहीं मिलेगा। पर
वो कब चाहेगा ??
जब उसमें दया का जन्म होगा और उसमें दया का जन्म कब होगा ? जब वो आपके अत्यधिक पुरुषार्थ का दर्शन करेगा। आपकी साधना, आपकी उत्कण्ठा, आपकी कृष्णरसभावभावितामति, आपके हर क्रियाकलाप के द्वारा उदित हुए उसके प्राप्तव्य के उद्देश्य का अनुभव करेगा। तब चाहेगा।
यही ये दो उँगल हैं एक आपका प्रयास और फिर दूसरा उसका अनुग्रह।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
After the ‘Maakhan-Chori’ Leela, Mata Yashoda tries to to tie up Shree Thakurji. She gets the rope from all over Braja but it falls short by two fingers. When the gap of two fingers will be bridged, then the unbound Brahman can be bound. Now, what are these two fingers??
The Divine, who has been proven to be attainable in the Bhajans, how can we attain Him or try to tie Him? We just fall short by two fingers. The first finger is our effort and the second is His grace!
How can we attain God? The Sutra of the Kathopanishad says that one can’t attain Him through discourses, neither knowledge nor excessive listening will enable you to attain Him! Till such time, He doesn’t will, one cannot attain Him! But;
When will He want??
When compassion arises in His heart! How will compassion arise? When He is able to see untiring effort! Your Sadhana, the ardor or longing, the ‘Krishnarasabhaav bhaavitamati’, when He sees the objective behind each and every effort, He will want!
These are the two fingers, one is the effort and the other, His compassion!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
नवनीतं चोरयित्वा श्रीयशोदा श्री ठाकुरजीं बद्धुं प्रयतते। ब्रजस्य सम्पूर्णः पाशः आगतः परन्तु सम्पूर्णः पाशः द्वौ अङ्गुलौ लघुः आसीत्। यदि ताभ्यां अङ्गुलौ पूर्णौ स्याद् अनिमितं ब्रह्म बद्धं स्यात्।
एतौ अङ्गुलौ किम्??
स्तोत्रेषु प्रत्यभिज्ञातान् देवान् कथं मिलिष्यन्ति। कथं ते एकीकृताः भविष्यन्ति ?
केवलं एतौ अङ्गुलौ लुप्तौ स्तः। एकः अस्माकं प्रयत्नः अपरः तेषां प्रसादः।
ईश्वरं कथं मिलितव्यम्??
कथोपनिषदसूत्रे उक्तं यत् प्रवचनद्वारा न प्राप्नुयात्, न च बुद्धिमान् भूत्वा, अतिशृण्वन् अपि न प्राप्स्यति, कथं प्राप्नुयात्, न कश्चित् प्राप्स्यति यावत् सः मिलितुम् इच्छति अहम्। किन्तु
सः कदा इच्छिष्यति??
कदा तस्मिन् प्रजायते दया कदा च प्रजायते । यदा सः भवतः अपारं प्रयत्नम् पश्यति। भवतः आध्यात्मिकः अभ्यासः, भवतः आकांक्षा, भवतः कृष्णचैतन्यः भवतः प्रत्येकं कार्यात् उत्पन्नं तस्य प्राप्तेः प्रयोजनं अनुभविष्यति। तदा इच्छति।
एतौ अङ्गुलौ भवतः प्रयत्नः अन्यः तस्य अनुग्रह:।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।