श्री राधारमणो विजयते
भक्ति का इतना सा ही अर्थ है
ज्ञानी कहता है तुम सब मिथ्या हो मैं भगवान हूँ पर भक्त कहता है तुम भगवान हो ये भगवान है वो भगवान है आप सब भगवान हो पर मैं नहीं हूँ मैं आप सब भगवान का दास हूँ
इस निराभिमानता की प्राप्ति अभिमान शून्यता का प्रारम्भ इस नौका में प्रवेश की आपको क्वालिफिकेशन देता है और यही सबसे कठिन काम है।
क्रोध का केन्द्र अभिमान है, काम का केन्द्र अभिमान है। सदा दम्भम् हित्वा करुरतिमपूर्वमतितरा।।
इसलिए इस बात को स्पष्टता से कह दिया
जहाँ मैं तहाँ तू नाहि जहाँ तू तहाँ मैं नाही
प्रेम गली अति साँकरी वामे दो न समाहि।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Gyani says that you all are illusory wheras I am God, but the Bhakta says that you are God, he is God, all around God abides but I am not God, I am the servant of the Lord!
The beginning of this modesty or humility is your first step onto this boat and is the qualification, though this is the most difficult!
The root of anger and Kama is ego. ‘Sada dammbham hittva karuratimpoorvam atittara’||
That is why it has been stated very clearly;
‘Jahaan mein tahaan tu naahi, jahaan tu tahaan mein naahi,
Prema gali ati saankari vaamey dui na samaahi||’
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
भक्तिः केवलम् अयम् अर्थः अस्ति
ज्ञानी कथयति यूयं सर्वे मिथ्या, अहं देवः किन्तु भक्तः वदति यूयं ईश्वरः, एषः ईश्वरः, सः ईश्वरः, यूयं सर्वे ईश्वरः किन्तु अहं नास्मि, अहं भवतः सर्वेषां ईश्वरस्य सेवकः अस्मि।
अस्याः निर्लज्जतायाः प्राप्तिः, अभिमानशून्यतायाः आरम्भः, भवतः अस्याः नौकायां प्रवेशस्य योग्यतां ददाति, एतत् च कठिनतमं कार्यम्।
क्रोधकेन्द्रं अभिमानं कामकेन्द्रं अभिमानम् | सदा दम्भं हित्वा करुरतीं पूर्वमतितरम्।
अत एव मया एतत् स्पष्टतया उक्तम्
यत्र अहं तत्र न असि, यत्र त्वं तत्र नास्मि
प्रेमवीथिः अतीव संकीर्णः अस्ति, तत्र द्वौ जनौ स्थातुं न शक्नोति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।।