श्री राधारमणो विजयते
हर व्यक्ति को मित्र आवश्यक है। जीवन में बड़ी से बड़ी उपलब्धि के बाद भी जिस व्यक्ति के पास मित्र नहीं है वो व्यक्ति जीवन में सदा उदास ही रहता है। भगवान का इसलिए एक नाम रखा है मित्र। सूर्य का एक नाम है मित्राय नमः। सूर्य मित्र हैं। ब्रह्मा जी ब्रजवासियों की उपासना करते हुए कह रहे हैं-
यन् मित्रम् परमानन्दम् पूर्णम् ब्रह्म सनातनम्।।
तुम्हारी जय जयकार क्यूँ है क्यूँकि जो पूर्ण सनातन ब्रह्म है वो तुम्हारा मित्र है।
मित्र सम्बन्ध को भी कहते हैं और भाव को भी कहते हैं। कोई-कोई सम्बन्ध ही मित्र होता है कि ये कोन है ये भाई नहीं है ये पिता नहीं है ये पुत्र नहीं है ये केवल मित्र है। कहीं-कहीं मित्र सम्बन्ध रूपक होता है। मित्रता सम्बन्ध रूपक होता है और कहीं-कहीं मित्रता भावरूपक होती है।
हैं तो ये पिता पर मेरे परम मित्र है। बल्कि शास्त्र तक ने ये आज्ञा दी है कि ‘पुत्र मित्र वदाचरेत्।।’ जब पिता पुत्र के जूते का नम्बर एक हो जाय तो पुत्र को मित्र बना लो। है तो ये हमारा भाई पर मित्र जैसा है।
आजकल लोग उसे मित्र मानते हैं जो जजमेंटल नहीं होता इससे ज्यादा बुरी व्याख्या नहीं हो सकती। जो हमें जज न करे। सबसे बड़ा मित्र उसे कहते हैं जो हमारा हित चाहे, जो महा जज हमें कर सके और हमें पूरा विश्वास हो कि ये कभी हमसे गलत नहीं कहेगा। जिसको हम प्रशंसा के साथ भरी सभा में डाँटने तक का भी अधिकार दे दें।
non judgemental व्यक्ति आपका मित्र नहीं हो सकता, वो तो आपके पतन का कारण हो जाएगा। परम हितैषी मित्र हो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
We all need a friend in life. Inspite of the greatest of achievements, if one doesn’t have a friend, one feels incomplete and sad. Therefore, one name of the Lord is ‘Mitra’. The Sun God is ‘Mitraya Namah’|
Sun is a friend. While worshipping the Brijwasis Lord Brahma says-
‘Yann mitram paramanandam poornam Bramha sanatannam||’
You all are hailed and are very fortunate because the ‘Poorna Sanatana Brahma’ is your friend.
‘Mitra’ or friend is a relationship as well as an emotion or Bhava. Some relationships are akin to a friend like he is not merely a father or a brother or the son, he is my best friend. Sometimes, friendship defines the relationship. At another, friendship explains an emotion or a feeling.
Though he is my father but he is my best friend. The scriptures declare, ‘Putra Mitra vaddachareta’||
When the size of the footwear becomes the same then treat your son as a friend. Though, he is my brother but he is a friend to me.
These days, people consider a non judgemental person to be a friend; there cannot be any worser definition than this! The one who doesn’t judge us. The best friend is one who always thinks of our welfare, who judges us top to toe and we are certain that he will never say anything wrong! The one who has the right to praise as well as reprimand even in public.
A non judgemental person can never be a friend, he might become instrumental in your downfall. The greatest benefactor is a true friend!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
प्रत्येकं व्यक्तिं मित्राणां आवश्यकतां अनुभवति। जीवने महतीं सिद्धिं प्राप्य अपि यस्य मित्रं नास्ति सः जीवने सर्वदा दुःखितः एव तिष्ठति । अत एव ईश्वरस्य नाम अस्ति मित्र। सूर्यस्य एकं नाम मित्राय नमः। सूर्यः मित्रम् । भगवान् ब्रह्मा ब्रज- जनान् पूजयन् वदति- .
यान मित्रं परमानन्दं पूर्णं ब्रह्म सनातनम्।
किमर्थं त्वं हर्षयसि यतः परं नित्यं ब्रह्म तव मित्रम्।
मित्राणि सम्बन्धा अपि च भावनाः इति उच्यन्ते। केवलं कश्चन सम्बन्धः मित्रः, को सः, सः न भ्राता, सः न पिता, सः न पुत्रः, सः केवलं मित्रम्। केषुचित् स्थानेषु मित्रसम्बन्धस्य रूपकम् अस्ति । मैत्रीसम्बन्धः उपमा, केषुचित् स्थानेषु मैत्री उपमा च।
अतः, सः मम पितुः परममित्रः अस्ति। वस्तुतः ‘पुत्र मित्र वडाचरितम्’ इति शास्त्राणामपि आदेशः दत्तः । यदा पिता पुत्रस्य जूतासङ्ख्या भवति तदा पुत्रं मित्रं कुरु। अतः सः अस्माकं भ्रातुः इव अस्ति किन्तु अस्माकं मित्रम् अपि अस्ति।
अधुना जनाः कस्यचित् अविवेकीं मित्रं मन्यन्ते । अस्मात् दुष्टतरं व्याख्यानं न भवितुमर्हति। कः अस्मान् न्यायं न करोति। महत्तमः मित्रः सः एव अस्माकं कल्याणं इच्छति, यः अस्माकं परमन्यायाधीशरूपेण कार्यं कर्तुं शक्नोति तथा च अस्माकं पूर्णः विश्वासः अस्ति यत् सः अस्मान् कदापि किमपि दुष्कृतं न वदिष्यति इति। यस्मै वयं स्तुतिपूर्णे समागमे ताडनस्य अधिकारमपि दातुं शक्नुमः।
अविवेकी भवतः मित्रं न भवितुम् अर्हति, सः भवतः पतनस्य कारणं भविष्यति। अतीव मित्रवतः मित्रं भवतु।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।