श्री राधारमणो विजयते ||
राम कारुण्य रूप है। करुणा ही उनको अवतरित करता है, करुणा ही उनको संचलित करता है, करुणा ही उनको वन तक ले जाता है। एक बात मैं विश्वास से कहना चाहूँगा रावण का वध भी पराक्रम नहीं हैं करुणा ही है ये भी करुणा है। पराक्रम दिखाने कि आवश्यकता ही नहीं है राम जी तो श्रीकरुणा करने गए थे।
हर स्थान पर वही करुणा। इसलिए जो जिसका है जो जहाँ से आया है जो जिसका होना चाहता है उसका उसमें लक्षण होना चाहिए। तुम इत्र के बाजार से आऐ और तुम्हारे कुर्ते से इत्र कि सुगन्ध न आए तो कैसे पता चलेगा कि कहाँ से आया था।
जन्म विवाह से लेकर वध तक राम जी की एक ही स्थिति है करुणा की। मैनें कहा जो जहाँ से आया है उसमें वहाँ कि सुगन्ध होनी चाहिए। अगर आपके अंतःकरण में तात्विक राम हैं तो उसके लिए अलग बात है पर अगर आपके हृदय में रसयुक्त राम हैं श्रीराम हृदय में बैठे हैं तो उसका पहला लक्षण होगा कि तुम करुणा से भरे होगे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Shree Rama is ‘Kaarunnya-Roopam’ or the embodiment of compassion. He incarnated out of compassion, compassion is the reason behind His actions and even the journey into the forest. I will like to say that the slaying of Ravana was not an act of valour, instead it was driven by compassion. He did not need to show any courage, it was only out of compassion that He went to Lanka.
At every step, there is compassion! That is why, whatever belongs to the person or from where has one come and whomsoever one wants to belong, he/she should posses those qualities. If you are passing through the market of Itra and your clothes don’t smell good then how would one know, where are you coming from?
Right from the birth to the wedding and upto the time of killing, He was in the state of compassion. I just mentioned that one carries the fragrance of one’s origin or from where one is coming! If Tatvic Rama is in your heart then it is a different but if your inclination is for the Rasa Roopa Rama then most certainly, you will have a compassionate disposition!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
रामः करुणारूपः । करुणा एव तान् अवतरति, करुणा एव तान् चालयति, करुणा एव तान् वनं नयति। एकं वस्तु विश्वासेन वक्तुमिच्छामि यत् रावणस्य वधमपि न शौर्यं, करुणा एव, एषा अपि करुणा। शौर्यं दर्शयितुं आवश्यकता नास्ति, राम जी दया कर्तुं गतः आसीत्।
सर्वत्र समाना करुणा। अत: यद् यद् कस्यचिद्, कुतः आगतं, यस्य कस्यचित् भवितुम् इच्छति, तस्य लक्षणं भवितुमर्हति। यदि त्वं गन्धविपणात् आगच्छसि, तव कुर्तातः गन्धस्य गन्धः न आगच्छति तर्हि कथं ज्ञास्यसि कुतः आगतः?
जन्मतः विवाहपर्यन्तं मृत्युपर्यन्तं रामजी इत्यस्य एकमात्रं स्थितिः करुणा एव। मया उक्तं यत् यत्र यत्र आगतं तस्य गन्धः भवेत्। यदि भवतः अन्तःकरणे तत्विक रामः अस्ति तर्हि भिन्नं वस्तु अस्ति, परन्तु यदि भवतः हृदये रास्युक्त रामः अस्ति, भवतः हृदये श्रीरामः उपविष्टः अस्ति, तर्हि तस्य प्रथमं लक्षणं भविष्यति यत् भवतः करुणापूर्णः भविष्यति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..