श्री राधारमणो विजयते
सकट का अर्थ है संशय। हर व्यक्ति की दृष्टि है। सकट इसी को कहते हैं एक व्यक्ति है वो केवल ऊपर ही ऊपर रस में फँसा हुआ है और उसको पाने के लिए अलग- अलग चीज़ों को इकट्ठा करता रहता है तभी बहुत सारी चीज़ों के बाद भी बदलता रहे क्योंकि चाह खतम नहीं है। जिस वस्तु से रस मिला है वो वस्तु सीमित है।
हमारे साथ यही होता है। हम अपने जीवन में जिस रस की जिस टेस्ट की टेक्निकली हम टेस्ट ही तो माँग रहे हैं आँख से vision के रूप में, मुख से शब्द के रूप में। तो कहीं न कहीं इच्छा तो रस की ही है। हर चीज़ से। पर समस्या ये है कि हमारे भीतर वो रस की कामना वाह्य से है, वस्तुओं से है।
अब ये नहीं पता है कि जिस वस्तु ने रस दिया वो रस वस्तु में था कि तुममें था? असल बात ये है कि वो रस वस्ती में नहीं है, आपमें है। क्योंकी हर व्यक्ति का रस अलग-अलग है। कोई उसी चीज से खुश हो जाता है, कोई उसी चीज से दुःखी हो जाता है।
सच बात तो यही है हम अपनी-अपनी कल्पनाओं से दुःखी हैं। परसेप्शन है सिचुएशन नहीं है। आप किसी चीज को ऊपर ऊपर से देखो तो नजर दूसरी होगी, वही आप उस चीज को गहराई से देखो तो नजर दूसरी होगी। ऊपर रस है नीचे रसेश्वर हैं।
यही जड़ता है। एक व्यक्ति है जिसके जीवन में रस प्रधान है, एक व्यक्ति है जिसके जीवन में रसेश्वर प्रधान है। इसी को सकट कहते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
‘Shakat’ or the bullock cart represents suspicion or diffidence. Each individual has his/her own vision or viewpoint. ‘Shakat’ is a person who shows that he/she is steeped in Rasa and in order to get it keeps on accumulating different things, but keeps on changing minute to minute because the desire is never ending. The thing which seems to have given Rasa is limited.
This is what happens with all of us. In our life, we are seeking the taste of a particular Rasa. Technically speaking, we want a very distinct taste like a particular type of vision or a very distinctive vocabulary. So, somewhere or the other the desire is of Rasa from different things. The problem is that our desire of Rasa is external, we seek it outside!
One doesn’t understand that whether the Rasa was in the object or in you? In reality, the Rasa is not in that object, it is within you. The Rasa of each and every individual is different. One maybe be delighted with the object whereas, the same object maybe painful for another!
The fact is that we are miserable because of our own imaginations. There is just a perception sans any situation! If you see an object from the outside, it is different but as you go deeper and see it minutely, the appearance changes. Outside is Rasa, the ‘Raseshwara’ is within.
This is the gross view. For some, Rasa is most important, for another the ‘Raseshwara’ is most important! This is ‘Shakat’!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
सकत् इति संशय इत्यर्थः । प्रत्येकस्य व्यक्तिस्य दृष्टिः भवति । एतदेव सकत् उच्यते । मनुष्यः केवलं उपरितनकामनासु फसति, तान् प्राप्तुं भिन्नानि वस्तूनि सङ्गृह्य एव तिष्ठति, तदा एव सः बहुवस्तूनाम् अनन्तरम् अपि परिवर्तमानः भवति यतोहि कामनाः कदापि न समाप्ताः भवन्ति। यस्मात् रसः लभ्यते सः विषयः सीमितः भवति ।
एतत् अस्माकं भवति। अस्माकं जीवने यः कोऽपि रसः भवति, यत्किमपि रसं वयं तान्त्रिकरूपेण याचयामः, तत् केवलं नेत्रेभ्यः दृष्टिरूपेण मुखात् शब्दरूपेण च याचयामः। अतः क्वचित् रसस्य इच्छा भवति। सर्वस्मात् । परन्तु समस्या अस्ति यत् अस्माकं अन्तः सा भोगस्य इच्छा बाह्यवस्तूनाम् एव भवति।
इदानीं न ज्ञायते यत् यत् वस्तु रसं ददाति स्म तत् वस्तुनि आसीत् वा त्वयि? वास्तविकं वस्तु अस्ति यत् सः रसः वास्तीयां नास्ति, भवतः अन्तः एव अस्ति। यतः प्रत्येकस्य व्यक्तिस्य रसः भिन्नः भवति। कश्चित् समानेन सुखी भवति, कश्चित् समानेन दुःखितः भवति।
सत्यं तु अस्ति यत् वयं स्वकल्पनाभिः दुःखिताः स्मः। प्रतीतिः एव, न तु स्थितिः। यदि भवन्तः किमपि उपरितः पश्यन्ति तर्हि दृश्यं भिन्नं भविष्यति, यदि भवन्तः तत् वस्तु गभीरतः पश्यन्ति तर्हि दृश्यं भिन्नं भविष्यति। उपरि रसः अधः रसेश्वरः ।
एषा जडता। अस्ति यस्य जीवने रसः मुख्यः अस्ति, अस्ति यस्य जीवने रसेश्वरः मुख्यः अस्ति। एतत् सकत् इति ।
परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।