श्री राधारमणो विजयते
भजन करने से भगवान नहीं मिलते। हरिभक्ति विलास कार कहते हैं भजन करने से अनर्थ निवृत्ति होती है। अनर्थ का मतलब होता है हमारे जीवन में से ऐसी वस्तुएं जिनका कोई अर्थ नहीं है।
जब आप भजन करो तो आपके जीवन में से वह वस्तु जिसका कोई उपयोग नहीं है वह खुद हटती जाए। अगर हटती जा रही है तो इसका मतलब है आप जो कर रहे हो उस दवाई का असर हो रहा है और अगर नहीं हट रही है बल्कि माला भी चल रही है और झंझट भी चल रही है इसका मतलब एक ही चीज है
भजनानंदी व्यक्ति छोड़ने में कभी परेशान नहीं होता। यह उसका सबसे बड़ा प्रमाण है। मीरा छोड़ चली मेवाड़ के साम्राज्य को एक तृण के समान अमरीश छोड़ चला ठाकुर जी संभाल लेंगे। प्रताप रूद्र जगन्नाथपुरी में सड़कों पर चल देते हैं चैतन्य महाप्रभु के पीछे।
भजन छोड़ने की आज्ञा ही नहीं देता भजन से वस्तुएं स्वतः ही छूट जाती हैं छोड़ने में तो समस्या है। भजन का इतना सा ही प्रभाव है बड़ी से बड़ी वस्तु का त्याग वह होता है अभ्यास में सिखा देती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Merely by doing Bhajan, one cannot attain God. The writer of ‘Haribhakti Vilas’ states that by doing Bhajan, one is able to overcome any calamity or misfortune. ‘Anartha’ or the misfortune means that things are useless or have no meaning in life.
When you do Bhajan then all that is meaningless in life, automatically gets eradicated. If useless things keep on falling apart it means whatever you are doing is having a positive impact but if the obstacles or misfortune persist inspite of your Japa, it means;
A ‘Bhajananandi’ never hesitates to give up. This is the biggest proof. Meera Bai left the kingdom of Mewar, Ambarish left everything just like a blade of grass, Shree Thakurji will take care! Pratap Rudra walks behind Chaitanya Mahaprabhuji on the streets of Jagannath Puri.
Bhajan never forces you to leave anything, things fall off on their own because giving up is not very easy!
The effect of Bhajan is this that even the most valuable possessions are given up without any difficulty!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
देवः भजनं कृत्वा न लभ्यते। हरिभक्ति विलास कर कहते हैं कि भजन करके अशुभमुक्ति होती है। आपदस्य अर्थः अस्माकं जीवने तानि वस्तूनि येषां अर्थः नास्ति।
यदा भवन्तः भजनं कुर्वन्ति तदा येषां वस्तूनाम् उपयोगः नास्ति ते स्वयमेव भवतः जीवनात् दूरीकृताः भवेयुः। यदि गच्छति तर्हि भवता क्रियमाणस्य औषधस्य प्रभावः भवति इति अर्थः यदि च न गच्छति तर्हि वेदना, उपद्रवः च अपि प्रचलति इति अर्थः।
भजननन्दी जनः कदापि गमनस्य चिन्ता न करोति। तस्य एतत् बृहत्तमं प्रमाणम् अस्ति। मीरा मेवाड़राज्यं त्यक्त्वा अमरीशं तृणवत् त्यक्तवान्, ठाकुर जी तस्य पालनं करिष्यति। चैतन्य महाप्रभु के अनुसरण करते हुए प्रताप रुद्र जगन्नाथपुरी की सड़कों पर।
भजन वस्तूनि त्यक्तुं अनुमतिं न ददाति, भजनस्य कारणेन वस्तूनि स्वयमेव अवशिष्यन्ते, तानि त्यक्तुं समस्या अस्ति। भजनस्य तथैव प्रभावः भवति यत् अस्मान् बृहत्तमानि अपि त्यागं कर्तुं शिक्षयति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।