श्री राधारमणो विजयते
विश्वास की एक गति है निर्भयता की गति है ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं पर उसके बाद भी स्वतंत्र है। दिन का ना होना रात है रात का ना होना दिन है ये एक दूसरे के पूरक हैं पर दिन का अपना अस्तित्व है और रात का अपना अस्तित्व है।
भरोसा अपना अस्तित्व है और निर्भयता अपना अस्तित्व है। गुरु चरणों में इन दोनों चीज की प्राप्ति होती है। इसलिए श्री गुरु चरण सरोज।। चरण को कमल कहा। उसके आगे भी शब्द जुड़ा रज। श्री गुरु चरण सरोज रज।
गुरु चरणों से भी ज्यादा अगर किसी की महिमा है तो गुरु चरण रज की महिमा है। वो गुरु चरण रज ही तो है जो शिष्य अपने मस्तक पर धारण करता है तिलक के रूप में। या यों भी कहना गलत नहीं होगा चरणों की महिमा नहीं है चरणों की रज की महिमा है।
भागवत जी का श्लोक कहता है बिना महत् पाद रजोऽभिषेका।। श्रीवृन्दावन में क्या है भगवान की रज ही तो है उसे धूली मत समझना उसे माटी मत समझना।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The direction of Vishwas or trust is towards fearlessness, both are intertwined yet independent. The absence of the day is night and vice-versa, yet they are interdependent and have their independent existence.
Trust or Bharosa has its own importance and fearlessness also is equally important. One can attain both once surrendered at the Lotus Feet of the Sadguru. That is why, ‘Shree Guru Charan Saroj’, the Charan has been equated with the Lotus flower. One more word has been suffixed, ‘Rujja’; ‘Shree Guru Charan Saroj Rujja’|
The sacred holy dust of the Lotus Feet of your Sadguru is even more glorious than his Divine Lotus Feet! The disciple anoints the forehead with the Tilak of this holy dust. It will not be proper to say that the Lotus Feet are any less glorious but the sacred dust is indeed more glorious!
A shloka of Bhagwatji says, ‘Vina mahatt pada rajobhishekam’||
Shree Vrindavan is nothing but the Divine Dust of the Lord’s Lotus Feet, please don’t mistake it with any ordinary dust or mud!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
श्रद्धायाः गतिः अस्ति अभयस्य च गतिः, तौ परस्परं पूरकौ स्तः परन्तु अद्यापि स्वतन्त्रौ स्तः। दिवाभावः रात्रिः, रात्र्याभावः दिवसः, ते परस्परं पूरकाः सन्ति किन्तु दिवसस्य स्वकीयं अस्तित्वं रात्रौ च स्वकीयं अस्तित्वम् अस्ति।
विश्वासः अस्माकं अस्तित्वं निर्भयं च अस्माकं अस्तित्वम्। एतौ द्वयमपि गुरुचरणयोः प्रतिपद्यते। अतः श्री गुरु चरण सरोज जी। पादौ पद्म उच्यते। ततः पूर्वं राजशब्दोऽपि योजितः । श्री गुरु चरण सरोज राज।
यदि कस्यचित् गुरुपादादधिक महिमा अस्ति तर्हि गुरुपादस्य वैभवः एव। गुरुचरणराजः एव यः शिष्यः तिलकरूपेण ललाटे धारयति। अथ वा न पादस्य महिमा, पादशोणितस्य महिमा इति वक्तुं न दोषः स्यात्।
भागवत जी के श्लोक में ‘बिन महत पद राजोभिषेक’ कहते हैं। श्रीवृन्दावने किम् अस्ति ? ईश्वरस्य रहस्यं मा रजः इति मा मृत्तिका इति मन्यताम्।
.. परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।