अहंकार उसे कहते हैं जब आप अपनी शकल शीशे में देखते हो तो आप अपने आप को क्या देखते हो? ये भी अहंकार का स्वरूप है कि मैं जगत का स्वामी हूँ तो कहीं न कहीं ये भी तो स्वरूप है कि मैं श्रीकृष्ण का दास हूँ। ये अहंकार भी कैसे छोड़ा जा सकता है? कि हम श्रीराधारानी के चरणसेवक हैं। श्रीवृन्दावन नाथपट्टमहषी राधैक सेव्य मम।। ये मम शब्द अभी भी है। मम शब्द तो अभी भी नहीं गया पर वो मम कौन है श्रीवृन्दावन नाथपट्ट महषि।। दासोऽहम् अहमेवदासः।। मैं तो है न पर उसका स्वरूप क्या है? स्वामी नहीं है, उसका स्वरूप भगवत् दासत्व है।