||Shree Radharamanno Vijayatey||
When you look at yourself in the mirror, what do you see? Arrogance makes you see a distorted image of yourself! An arrogant person feels that ‘I am the Master of all I survey’ while a devotee feels that I am Shree Krishna’s Das or servitor. Why do we need to give up this pride that we are the ‘Charan Sewak’ of Shree Radha Rani?
‘Shree Vrindavan Nath paatmaheeshi Raadhaika sevya muma’||
This word ‘Muma’ is still there which is me but here;
‘Shree Vrindavan Nath pattamaheeshi daasoham ahamevadaasaha||’
What is the Swaroop?
‘I’ is still there but it is ‘i’ (small i), not the Master but the servitor of the Almighty!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
अहंकार उसे कहते हैं जब आप अपनी शकल शीशे में देखते हो तो आप अपने आप को क्या देखते हो? ये भी अहंकार का स्वरूप है कि मैं जगत का स्वामी हूँ तो कहीं न कहीं ये भी तो स्वरूप है कि मैं श्रीकृष्ण का दास हूँ। ये अहंकार भी कैसे छोड़ा जा सकता है? कि हम श्रीराधारानी के चरणसेवक हैं।
श्रीवृन्दावन नाथपट्टमहषी राधैक सेव्य मम।।
ये मम शब्द अभी भी है। मम शब्द तो अभी भी नहीं गया पर वो मम कौन है
श्रीवृन्दावन नाथपट्ट महषि।। दासोऽहम् अहमेवदासः।। मैं तो है न पर उसका स्वरूप क्या है? स्वामी नहीं है, उसका स्वरूप भगवत् दासत्व है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।