Radharamano Vijyate
Jai Gaur
Hindi —
ब्रह्मचर्य सही कहूँ तो केवल शारीरिक धर्म तक सीमित नहीं है सामान्यतः ब्रह्मचर्य कहते ही व्यक्ति के मन में एक ही विषय आता है वो स्त्री और पुरुष के सम्बन्ध हैं पर ब्रह्मचर्य केवल इतने तक सीमित नहीं है बल्कि अपने हर क्रिया-प्रक्रिया में ब्रह्म को चरना, ब्रह्मम् चरति॥ साक्षात् श्रीकृष्ण का चिंतन|
जैसे घोड़ा चलता रहता है और घास चरता रहता है ऐसे ही हम अपने जीवन में कर्तव्य का पालन करते रहें और श्रीकृष्ण रस का आस्वादन करते रहें, यही ब्रह्मचर्य का विशुद्ध स्वरूप है| बड़े से बड़े नियंत्रण करने के बाद भी अगर भजन नहीं हुआ तो उस नियंत्रण का क्या लाभ?
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन माध्व गोडेशवर वैष्णवआचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महराज ||
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For English —
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Factually speaking, Bramhacharya is just not limited to following physical control. Generally, people associate it with the restrictions exercised between man woman relationship but it is to experience the Brahman in each and every action in life, ‘Brahmam charati’||
This is the thought of none other but Shree Krishna, himself!
Like a horse keeps on grazing while walking, in the same way while performing our duties we keep on experiencing Shree Krishna Rasamrit, this is the actual nature of Brahmacharya. In spite of exercising strict control, still if we aren’t able to enter the realm of Bhajan, then what is the use of such control?
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
For Sanskrit —
न्याय्यं वक्तुं ब्रह्मचर्यः केवलं भौतिकधर्मे एव सीमितः नास्ति । सामान्यतः ब्रह्मचर्यं वदन् एक एव विषयः मनसि आगच्छति, सः स्त्रीपुरुषयोः सम्बन्धः, परन्तु ब्रह्मचर्यः केवलम् एतस्मिन् एव सीमितः नास्ति, अपितु प्रत्येकस्मिन् कर्मणि ब्रह्माणं चरति, ब्रह्म चरति॥ श्री कृष्ण का साक्षात् चिंतन।
यथा अश्वः तृणेषु चरति, चरति च, तथैव वयं स्वजीवने स्वकर्तव्यं निर्वहन्तः श्रीकृष्णस्य सारस्य आस्वादनं कुर्वन्तः स्थातव्यम्, एतत् ब्रह्मचर्यस्य शुद्धं रूपम् अस्ति। महत्तमं नियन्त्रणं कृत्वा अपि यदि भजनं न क्रियते तर्हि तस्य नियन्त्रणस्य किं लाभः।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।
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