श्री राधारमणो विजयते
प्रेम स्वतः है स्वाभाविक है। कोशिश करके नहीं किया जा सकता कि लो रोज व्यवस्था बनाओ करो।
कई लोग कहते हैं हम साठ के बाद भक्ति ही करेंगे। ऐसे थोड़ी न होता है। ये तो बहुतों को नहीं पता कहाँ हो जाय, कब हो जाय? मीरा को मइया ने बस इतना सा ही कह दिया- देख सामने मूर्ति जो बैठे हैं गोपालजी वही तेरे पति हैं। बस हो गया काम।
जाके सिर मोर मुकुट मेरोपति सोइ।।
ये तो अंदर हृदय में भाव रहे कहाँ किसको देखकर बात बन जाए। कोई योजना बनाकर ये चीज नहीं होती, धीरे-धीरे हम जगत छोड़ रहे हैं धीरे-धीरे अब हम भगवान से प्रेम करने का प्रयास कर रहे हैं। हाँ धर्माचरण की बात है धर्म का आचरण का अभ्यास होना चाहिए। हम धीरे-धीरे अच्छे-अच्छे संग करें, सत्संग का प्रयास हो। सत्संग भी धर्माचरण के अंतर्गत ही आता है। धर्माचरण का अभ्यास व्यक्ति सदा करे पर
प्रेम तो उसे प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है। वो अपने आप प्रकट होता है।
तुम गइया का ध्यान रख सकते हो, उसको चारा खिला सकते हो ,उसका चराने की व्यवस्था कर सकते हो। दूध तो गइया स्वयं ही प्रकट करेगी। और जब उसके साथ सम्बन्ध होगा, निचोड़ोगे तभी दूध निकलेगा।
प्रेम तो धर्माचरण के पथ पर चलकर किसी संत की कृपा हो जाय, सत्संग में बैठे-बैठै कोई बड़ी बात नहीं कभी किस महापुरुष की कृपा हो जाय और वो मन ही मन आशीर्वाद दे दे और जीवन में श्रीकृष्ण चरणों की प्रीति प्राप्त हो जाय। ये बड़ा कठिन है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Prema or Divine Love is natural and inborn. You can not plan it in advance or make it a part of your daily routine.
Many people say that we will do Bhakti after sixty! It cannot be done like this! Nobody can foretell when and where will it happen? Meera Bai’s mother just pointed out Shree Krishna’s idol to her that He is your husband. That’s it!
‘Jaakey sira more mukut mero pati soi’||
This is an internal feeling, how and when on seeing that person it just clicks! You cannot plan it out, slowly and gradually the world starts slipping out of your hand and you start loving the Lord or moving towards Him. Indeed, it entails leading a Dharmic life. One should look forward to good company or seek Satsanga. This is also a part of Dharma. One should always strive to be Dharmic but,
Prema is the Prasad. It happens on its own!
You can look after the cow, feed her grass, make arrangements for grazing but the milk is given by her own volition, when you establish a contact with her and extract the milk from her udder.
When you do Satsanga treading on the path of Dharma, you are showered with the grace of a Saint who blesses you with the Divine Lotus Feet of Shree Krishna! Though, it is not so easy!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
प्रेम स्वचालितं स्वाभाविकं च भवति। प्रतिदिनं व्यवस्थां कर्तुं प्रयत्नतः कर्तुं न शक्यते।
षष्ट्याः अनन्तरमेव भक्तिं करिष्याम इति बहवः जनाः वदन्ति। एवं न भवति। अनेके न जानन्ति यत् एतत् कुत्र भविष्यति, कदा भविष्यति? माता केवलं मीराम् अवदत् – पश्यतु, भवतः पुरतः उपविष्टा प्रतिमा गोपालजी, भवतः पतिः अस्ति। कार्यं भवति ।
गत्वा मेरोपतिं मयूरमुकुटं स्थापयतु।
हृदये तादृशः भावः अस्ति यत् कस्यचित् दर्शनानन्तरं कस्यचित् सह वार्तालापः कर्तुं न शक्यते । एतत् वस्तु किमपि योजनां कृत्वा न भवति, क्रमेण वयं जगत् त्यजामः, क्रमेण इदानीं वयं ईश्वरं प्रेम्णा प्रयत्नशीलाः स्मः। आम्, धर्माचरणस्य विषयः, धर्म आचरणं कर्तव्यम्। क्रमेण सत्जनैः सह सङ्गतिं कुर्मः, सत्संगाय च प्रयत्नाः कुर्मः। सत्संगः धार्मिकाचरणस्य अन्तर्गतम् अपि आगच्छति । धर्माचरणं सदा कुर्यात् किन्तु…
सः प्रसादरूपेण प्रेम प्राप्नोति। स्वयमेव दृश्यते ।
भवन्तः गां पालनं कर्तुं, तस्याः चारान् पोषयितुं, तस्याः चरनस्य व्यवस्थां कर्तुं च शक्नुवन्ति । गैया स्वयं क्षीरं प्रकाशयिष्यति। यदा च त्वं तया सह मैथुनं करोषि तदा त्वं तत् निपीडयसि तदा एव क्षीरं बहिः आगमिष्यति।
यदि भवान् धार्मिकाचरणस्य मार्गं अनुसृत्य कस्यचित् साधुस्य आशीर्वादं प्राप्नोति तर्हि प्रेम्णः सम्भवः भवितुम् अर्हति। सत्संगे उपविश्य महती कार्या न भवति, यदि भवन्तः कस्यचित् महापुरुषस्य आशीर्वादं प्राप्नुवन्ति तथा च सः भवन्तं मनसि आशीर्वादं ददाति तथा च भवन्तः जीवने श्रीकृष्णस्य चरणप्रेमं प्राप्नुवन्ति। एतत् अतीव कठिनम् अस्ति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।