श्री राधारमणो विजयते
भगवान श्री रामचंद्र जी ने अवतार लेकर यह स्थापित किया कि एक अच्छा इंसान एक अच्छा मानव कैसा होता है। जब पूछा गया कि मनुष्य का धर्म क्या है? तो राम आ गए। जब पूछा ईश्वर का धर्म क्या है तो कृष्ण आ गए और जब पूछा भक्ति का धर्म क्या है तो नबद्वीप में श्रीचैतन्य महाप्रभु जी आविर्भूत हुए।
क्योंकि हमको इंसान ही बनना है। सबसे पहली बात तो वही है। देवता बनने की कोई आवश्यकता नहीं है। बड़ा भारी महात्मा बनने की बात तो बाद में देखी जाती है। पहले एक सही व्यक्ति आप बन जाओ।
जैसे हो वैसे बन जाओ। यह रघुनाथ आज्ञा दे रहे हैं। सुंदर बात कही है-
फ़र्श से ता-अर्स मुमकिन है तरक्की ओ अरूज़;
फिर फरिश्ता भी बना लेंगे तुझे, पहले इंसा तो बन!
जब आप एक सही व्यक्ति बन जाते हैं। सही व्यक्ति मतलब ठाकुर से प्यार करके सब में प्यार बांटना।
प्यार इत्र की तरह होता है, एक के लिए लगता है और सबको खुशबू आ जाती है। ऐसे ही राधारमण के लिए प्यार का इत्र लगाओ और दुनिया में चलते समय हर आदमी तुम्हारे उसे प्यार के इत्र की सुगंध को सूँघ कर मस्त हो जाए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Avatar of Lord Rama taught us how to become a good human being! The question arose that what is Manav Dharma? To teach the world, Lord Rama incarnated. The next question was, what is Eashwar Dharma ? To answer this, Lord Krishna came! In the present age, the question cropped up, what is the Bhakti Dharma? To answer this Shree Chaitanya Mahaprabhuji appeared in Navadweepa.
We need to become a good human first. This is the most important thing. There is no need to become God. To become a great Mahatma or an ascetic comes later. One needs to become a good human being!
You first become good, as you are. Shree Raghunath is telling us to do it. It is very beautifully said –
‘Ars mumkin hai tarrakki O’Arooz; phir farishta bhi bannalengey tujhey, pahaley insaan toh bunn!’
Become a good man. By this I mean, love Thakur and then share this love with the whole world.
Love is like ittra, one person applies it but it’s fragrance spreads all around. In the same way, apply the ittra of Shree Radha Ramanji’s Divine love and when you walk in the world, people around you will be enchanted by its divine fragrance!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
श्री रामचन्द्र: अवतार: कृत्वा स्थापितवान् यत् सत्पुरुषः कीदृशः भवति। मनुष्यस्य कः धर्मः इति पृष्टे ? अतः रामः आगतः। ईश्वरस्य धर्मः कः इति पृष्टे कृष्णः आगत्य भक्तिधर्मः कः इति पृष्टे श्रीचैतन्यमहाप्रभुः नबद्वीपे प्रादुर्भूतः।
यतः अस्माभिः केवलं मानवः एव भवितुम् अर्हति। तत् प्रथमं वस्तु। देवत्वस्य आवश्यकता नास्ति। महान् महात्मा भवितुं विषयः पश्चात् द्रष्टुं शक्यते। प्रथमं योग्यः व्यक्तिः भवतु।
यथा भवसि तथा भव। रघुनाथः एतत् आदेशं ददाति। सुन्दरं वस्तु उक्तम्-
तलतः प्रगतिः सम्भवति हे अरुज;
तदा वयं भवन्तं दूतं करिष्यामः, प्रथमं मानवः भव!
यदा त्वं सिद्धः व्यक्तिः भवसि। समीचीनः व्यक्तिः ठाकुरं प्रेम्णा सर्वैः सह प्रेम्णः साझेदारी इत्यर्थः ।
प्रेम गन्धवत्, एकस्य कृते प्रयोज्यते सर्वेषां च गन्धः प्राप्यते। तथा राधारमणे प्रेमगन्धं प्रयोजयित्वा जगति गच्छन् प्रत्येकः व्यक्तिः तस्य प्रति भवतः प्रेमस्य गन्धस्य गन्धं गन्धं प्राप्य मोहितः भविष्यति।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।