श्री राधारमणो विजयते
लीला उसी को कहते हैं जो लौल्यता देती है। लौल्यता का मतलब और गहरी प्रतीक्षा की आग। और वो प्रतिक्षा की आग कैसे बढ़ रही है? ठाकुर के स्वभाव को जान करके।
जब आप ठाकुर का स्वभाव जानते हो तब आपका भाव और बढ़ता है।
किसी के स्वभाव को आप जानो की अरे यह तो बहुत अच्छा है। जब ठाकुर के प्रति आकर्षित होकर के उनके स्वभाव को जानते चले जाते हो तो आपका भाव बढ़ता चला जाता है। और वह अपने स्वभाव को दिखा रहे हैं सबसे पहले
जन्म लेकर मथुरा में पहुँच रहे हैं, गोकुल में। पूतना पर कृपा करके सबका उद्धार कर रहे हैं, नामकरण संस्कार कर रहे हैं, बड़े होकर के गौ चारण माखन चोरी लीलाएं कर रहे हैं। ठाकुर अपनी लीलाओं का विस्तार कर रहे हैं।
जब आप इनको सुनते हो तो ठाकुर के प्रति और ज्यादा आकर्षित होते होता है। लीला लौल्यता देती है।
लीला वह है जो पाया है वह पच जावे। मतलब जो आपने इतनी लीलाओं को श्रवण करके धन एकत्रित कर लिया है वह पचा रहे, तिजोरी में बचा रहे। बचाना और बढ़ाना ये दशम स्कंध श्रवण से होता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Leela is what creates ‘Laullyata’ in you. In other words, it lights the fire of intense longing and patient wait. Now how does one fan this fire? Only by knowing and understanding the nature of Shree Thakurji.
When you know His nature, your longing for Him grows.
When you know about the nature then you can say how good the person is! When you are attracted towards Shree Thakurji, you come to know His nature and your Bhava or feelings keep on multiplying. He shows His nature right from the birth.
He takes birth in Mathura and reaches Gokul immediately. He liberates ‘Pootana’ and goes on liberating people one after another, the Naam Karan sanskara takes place, growing up He takes the cows for grazing and does the ‘Maakhan-Chori’ Leela. He goes on expanding the sphere of His Leelas.
When you hear all this, your attraction towards Him grows manifold. Leela provides intense longing and wait.
Leela is what you digest or absorb that you have got. Meaning, after hearing, the wealth you have accumulated, you digest and save it. Saving and multiplying happens by hearing the Dasham Skandha!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
केवलं तदेव रमणीयं लीला उच्यते। निष्ठायाः अर्थः गभीरप्रतीक्षायाः च अग्निः। कथं च सः प्रतीक्षाग्निः वर्धते ? ठाकुरस्य स्वरूपं ज्ञात्वा ।
यदा त्वं ठाकुरस्य स्वरूपं जानासि तदा भवतः भावनाः अधिकं वर्धन्ते।
त्वं कस्यचित् स्वभावं ज्ञात्वा चिन्तयसि, अहो एतत् अतीव उत्तमम्। यदा भवन्तः ठाकुरस्य प्रति आकृष्टाः भवन्ति, तस्य स्वभावं च जानन्ति तदा भवतः भावनाः वर्धन्ते एव। स च प्रथमं स्वस्वभावं दर्शयति
जात्वा वयं मथुरां गोकुलं प्राप्नुमः। पूतनायाः दयां कृत्वा सः सर्वान् तारयति, नामकरणं करोति, वर्धमानः च सः गोपालनस्य, घृतस्य चोरणस्य च लीलाम् अकरोत् । ठाकुरः स्वस्य लीलानां विस्तारं कुर्वन् अस्ति।
यदा भवन्तः तान् शृण्वन्ति तदा भवन्तः ठाकुरं प्रति अधिकं आकृष्टाः भवन्ति। लीला मनोहरतां ददाति।
लीला यत् प्राप्तं तत् पचयेत्। अर्थात् एतावता लीलाः श्रुत्वा भवता यत् धनं संगृहीतं तत् पच्य तिजोरीयां रक्षितव्यम्। एतस्य रक्षणं वर्धनं च दशमपक्षस्य श्रवणेन भवति।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।