श्री राधारमणो विजयते
सितार के तार बहुत ज्यादा ढीले पड़ गए हो तो भी स्वर पैदा नहीं होता, बहुत ज्यादा कसे हुए हों तो भी स्वर पैदा नहीं होता। सितार के तार बहुत ज्यादा कैसे और बहुत ज्यादा ढीले के बीच में होना चाहिए।
अगर वह बीच में स्थित हो गए तो लगी हुए एक उंगली भी न जाने कितने संगीत और स्वरों को पैदा कर देती है। इसी प्रकार
बचपन किसे कहते हैं? जिसमे तार बहुत ज्यादा कसे होते हैं। बुढ़ापा किसे कहते हैं? जब सभी तार ढीले पड़ जाते हैं। यौवन अवस्था ही एक ऐसी संतुलित अवस्था है जब आप उस यौवन अवस्था का प्रयोग करके गोविंद का नाम स्मरण करके अपने हृदय के गर्भ से जब जोर से कहते हो-
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
तो गोलोग भी गूँज जाता है और श्रीठाकुरजी प्रसन्न हो जाते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If the strings of the Sitar are too loose or too tight, no music can be played on them. The strings should have just the right tension in order to play the melodious notes!
If the strings are not too tight or too loose, if they are well tuned or in other words, they are midway, just the touch of one finger will produce divine melody. In the same way;
What is childhood? It is like the strings are highly strung. What is old age? As though the strings are too loose! Youth is the the right age when you can utilise the energy to chant or repeat the Divine Name of Shree Govind and at the core of your heart, you can say with full vigour-
Harey Krishna Harey Krishna Krishna Krishna Harey Harey|
Harey Rama Harey Rama Rama Rama Harey Harey||
Then, the Goloka reverberates and Shree Thakurji is utterly pleased!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||