श्री राधारमणो विजयते
रूप बाहर कि वस्तु है स्वरूप भीतर की वस्तु है। वैष्णव का रूप अलग है स्वरूप अलग है। रूप है ये कण्ठ लग्न तुलसी माला पर उसका स्वरूप क्या है तृणाऽदपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना ये उसका स्वरूप है
मस्तक पर ऊर्ध्वपुण्ड्र लग रहा हो पर उससे बड़ा उसके सिर पर अभिमान चढ़ रहा हो तो वैष्णव का रूप आया स्वरूप नहीं आया।
मस्तक पर जितना लम्बा तिलक हो उसके तृण मात्र अगर उसने जीवन में अपने आप को सामान्य समझता हो तो पता चल जाता है।
तिलक तो पसीने से मिट जाता है पर गंगा यमुना स्नान करने के बाद कौन क्या तिलक धारण करता है सब मिट जाता है फिर कौन रामानन्दी कौन रामानुजी पर उस समय उनका स्वभाव ही उनके स्वरूप को प्रकट करता है।
उस समय जब अगर गोस्वामी जी आ रहे हो और उनकी आगमन गमनागमन में वो विशुद्ध करुणता गौड़ियत्वता विशुद्ध तृणाऽदपित्वता का अनुभव होगा तब तिलक नहीं आपकी मृदु चाल संकेत करेगी कि श्यामसुन्दर के गोसाईँ जु आ रहे हैं।
उस समय जब सतत् राधाश्याम नाम निसृत होगा जब आँखों के भीतर जुगल कि मधुरिमा उद्भावित हो रही होगी उसे देखकर संकेतित होगा कि ये कोई निम्बार्क सम्प्रदाय के जगद्गुरु चले आ रहे हैं।
जब लक्ष्मीनाथ का विशुद्ध ऐश्वर्य जिनकी अंगकान्ति के ऊपर श्रीयुक्त होकर अविराजित होगा तब पता चलेगा कोई श्रीसम्प्रदाय के वैष्णव चले आ रहे हैं।
जिसकी चाल में ही वात्सल्य लुढ़क रहा हो तब संकेत होगा कोई वल्लभाचार्य चले आ रहे हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The ‘Roopa’ or appearance is external whereas ‘Swaroopa’ or the nature is internal. The appearance of a Vaishnava is different from his/her nature. When we talk about the appearance, we see a Tulsi Mala around the neckline but the nature is, ‘Trunnadapi suneechena tarorrapi sahishnuna’.
If the ‘Urdhvapunda’ Tilak is adorning the forehead but the person has a swollen head then, though the outward appearance is of a Vaishnava but the nature is not!
There might be a very long Tilak on the forehead but if the person is humble then this nature becomes more visible.
The Tilak gets wiped off due to sweat or if one bathes in the Ganga or Yamuna and comes out, you can’t differentiate between the ‘Ramanandi’ or a ‘Ramanuji’ but the inherent nature is reflected all the time.
When you see a Goswami coming then if the gait and the countenance exhibits total compassion, Pure ‘Gaudiya’ nature along with him being the embodiment of ‘Trunnadapitvata’ or humility, at that moment there is no outer sign of a Tilak but the humble gait will tell you that Shree ‘Shyam Sundar’s’ ‘Gossainju’ is coming.
At that time if the Radhey Shyam naam flows continuously, the eyes will reflect the sweetness of Jugal Kishore, seeing him, you will immediately understand that Jagadguru of the Nimbarka sect has come.
When the divine faculties of omnipresence of Shree Lakshminath are visible on the vissage along with the Shree, then you will know that the Vaishnava of the Shree sect has come!
If the walk itself is filled with fond affection and overflowing with tenderness then you feel as though Shree Vallabhacharya has entered!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
रूपं बाह्यं वस्तु, रूपं आन्तरिकं वस्तु। वैष्णवस्य रूपं भिन्नम् । इदं तुलसीमालायां कण्ठोरुह्यरूपं, किं तस्य रूपं, इदं रूपम्।
यदि शिरसि उर्ध्वपुन्द्रः अस्ति किन्तु तस्मात् बृहत्तरस्य शिरसि अभिमानः उत्थितः अस्ति तर्हि वैष्णवरूपं न आगतं।
ललाटे तिलकस्य दीर्घता ज्ञातुं शक्नोति यत् मनुष्यः जीवने स्वं सामान्यं मन्यते वा इति ।
तिलकः स्वेदेन मेटितः भवति परन्तु गङ्गायमुनायां स्नानानन्तरं यः किं तिलकं धारयति, सर्वं मेटयति, ततः कः रामानन्दी कः रामानुजी, परन्तु तस्मिन् समये तेषां स्वभावः एव तेषां रूपं प्रकाशयति।
तस्मिन् समये यदा गोस्वामी जी आगच्छति तदा तस्य आगमने गतिषु च सा शुद्धा करुणा, गौडियात्व, शुद्ध त्रिनादपतिवता अनुभविता भविष्यति, तदा भवतः मृदुगतिः न तु तिलकः श्यामसुन्दरस्य गोसाई जू आगच्छन्ति इति सूचयिष्यति।
तस्मिन् समये यदा राधाश्याम् इति नाम निरन्तरम् उच्यते, यदा नेत्रयोः अन्तः जुगलस्य माधुर्यं उद्भूतं भविष्यति, तत् दृष्ट्वा निम्बार्कसम्प्रदायस्य अयं जगद्गुरुः आगच्छति इति सूचयिष्यति।
यदा लक्ष्मीनाथस्य शुद्धा ऐश्वर्यस्य उपरि भविष्यति यस्य शरीरं श्रीयुक्तं भूत्वा अपराजितं भविष्यति, तदा श्रीसंप्रदायस्य कश्चन वैष्णवः आगच्छति इति ज्ञास्यति।
यदि तस्य गमने स्नेहः आवर्तते तर्हि कश्चन वल्लभाचार्यः आगच्छति इति संकेतः स्यात्।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा: