श्री राधारमणो विजयते
स्वार्थ और स्वहित दोनों शब्दों में थोड़ा सा फरक है। मैं जीवन में ऐसा भी काम करूँ जिससे अपना उद्धार कर सकूँ। अपना उपकार कर सकूँ। आप परोपकार के लिए जो भी कार्य करेंगे वो अद्भुत है। सच बात कहूँ तो हमने अभी शब्दों को गहराई से पकड़ा नहीं है परोपकार शब्द थोड़ा अलग है। इसको जरा सन्धि विच्छेद करें- पर +उपकार।
परोपकार कोई मनुष्य नहीं कर सकता परोपकार केवल परमात्मा कर सकता है। क्या आप सच में दूसरे का उपकार कर सकते हैं ? ये शब्दों के भेद बड़े गम्भीर हैं। परोपकार कोई सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता। बिना कुछ भी लिए समाज से करे।
परोपकार वृक्ष करता है जो कुछ भी नहीं लेता। परोपकार गऊ करती हैं। जितना आहार वो खेतों में से लेती है उसके गोबर के द्वारा उससे ज़्यादा आहार का सृजन उसके द्वारा होता है। और सच बताओ हमारे श्रीराधारमण लाल तो आपसे लेते क्या हैं ? ठाकुरजी आपसे क्या ले रहे हैं जो भी रहें हैं उसे देने की औकात भी पहले हमें दे रहे हैं। इसलिए बात के शब्दों को समझिएगा।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
There is a difference between selfishness and self interest. I should act in a manner which can liberate me or can do good for myself. Whatever you do for the benefit of others, it is indeed amazing! To tell you the truth, we haven’t been able to understand the depth of the words because service of others is a bit different. If we do the disarticulation or Sandhi-Vichheda then it becomes Par + Upkaar.
‘Paropkaar’ can never be done by man, it can only be done by the Almighty. Can you truthfully do the good of others? The difference between the words are quite serious. Any ordinary person can never do any good of others. Without taking anything to work for the benefit of the society.
The tree does good of the society without taking anything or any expectation. The cow does good of the society. What ever it takes from the field, in return it gives much more in the form of cow-dung which becomes the manure for the field. Please tell me honestly, does our Shree Radha Raman Lalju take anything from you? Whatever if at all you offer Him, He ensures to make you capable to give. That’s why please understand the depth of the words!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
स्वार्थशब्दयोः स्वार्थयोः किञ्चित् भेदः अस्ति । जीवने एतादृशं कार्यं कर्तव्यं यत् अहं आत्मानं तारयितुं शक्नोमि। अहं भवतः उपकारं कर्तुं शक्नोमि। भवन्तः यत्किमपि कार्यं दानार्थं कुर्वन्ति तत् आश्चर्यजनकम् अस्ति। सत्यं वक्तुं शक्यते यत् अद्यापि वयं शब्दान् गभीरं न अवगच्छामः। दानशब्दः किञ्चित् भिन्नः अस्ति । अयं सन्धिः भङ्गं कुर्मः – किन्तु + अनुग्रहः ।
कोऽपि मानवः दानं कर्तुं न शक्नोति, केवलं ईश्वरः एव दानं कर्तुं शक्नोति। किं भवन्तः अन्येषां प्रति उपकारं कर्तुं शक्नुवन्ति वा ? एते शब्दभेदाः अतीव गम्भीराः सन्ति। न कश्चित् सामान्यः जनः दानं कर्तुं शक्नोति। किमपि न गृहीत्वा समाजाय करोतु।
दानं क्रियते वृक्षेण यः किमपि न गृह्णाति। गावः दानं कुर्वन्ति। क्षेत्रेभ्यः यत् अन्नं गृह्णाति तस्मात् अधिकं तस्य गोबरद्वारा अन्नं निर्मीयते । सत्यं च वदतु, अस्माकं श्री राधारमणलालः भवतः किं हरति? ठाकुरजी भवतः किं गृह्णाति ? सः अस्मान् यत् किमपि अस्ति तत् दातुं अवसरमपि ददाति। अतः वार्तालापस्य वचनं अवगच्छन्तु।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।..