श्री राधारमणो विजयते
श्रद्धा के पीछे जिज्ञासा की एक बहुत बड़ी भूमिका है। जब वो बात समझ में आ जाय तब एक नई चीज पैदा होती है। पहले प्रश्न समझना पड़ेगा फिर उत्तर की समझ आवेगी।
वैष्णवता का उदय कब होता है जब उस जिज्ञासा का उस प्रश्न का जवाब तुम्हारे पास रहता। क्यों? राधारमण के लिए। साँचो इक राधारमण झूठो सब संसार।। जब वो क्यों मिट जाता है तब श्रद्धा का उदय होता है। और जैसे ही श्रद्धा का उदय होता है तब फिर शास्त्र एक प्रश्न करता है – क्यों?
ये क्यों का बीज तुम्हारे पास आ गया। तुम इस रास्ते पर क्यों उतर आये हो? वो फिर प्रश्न करता है। पहले प्रश्न तुम्हारा था उत्तर शास्त्र ने दिया था, अब शास्त्र प्रश्न पूछता है उत्तर तुमको देना पड़ेगा।
जब कक्षा चलती है तो प्रश्न विधार्थी पूछता है अध्यापक उत्तर देता है, पर जब exam चलता है तब अध्यापक प्रश्न पूछता है और विधार्थी उत्तर देता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
‘Jigyasa’ or curiosity has a very important role behind Shraddha. When one thing is understood then a new curiosity crops up. First you need to understand the question only then you will understand the answer.
You develop ‘Vaishnavata’ when you get the answer for your question and the curiosity. Why? For Shree Radharaman! ‘Sancho ek Radharaman jhutto sab sansar’|| When this ‘why’ goes away then Shraddha is born. As Shraddha develops, the scriptures ask the question – Why?
This sows the seed of Why in you. Why are you following this path? He again asks this question. In the beginning, the question was yours and the answer is given by the scriptures, now the scriptures ask you a question and you have to give the answer!
When the class is going on the students ask the question and the teacher answers, but during the examination the teacher asks the questions and the students give the answers.
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
विश्वासस्य पृष्ठे जिज्ञासायाः महती भूमिका भवति। यदा तत् वस्तु विज्ञायते तदा नूतनं वस्तु जायते। प्रथमं प्रश्नं अवगन्तुं भवति ततः उत्तरं अवगमिष्यन्ति।
तस्य कौतुकप्रश्नस्य उत्तरं यदा भवतः समीपे वैष्णवधर्मः कदा उत्पद्यते? किमर्थम्? राधारमणे कृते । एकः एव राधारमणः, सर्वं जगत् मिथ्या अस्ति। यदा तत् किमर्थम् अन्तर्धानं भवति तदा श्रद्धा उत्पद्यते। श्रद्धा च उत्पद्यमानमात्रं शास्त्रं पुनः प्रश्नं पृच्छति – किमर्थम् ?
किमर्थम् एतत् बीजं भवतः समीपम् आगतं ? किमर्थं त्वं अस्मिन् मार्गे अवतरसि ? सः पुनः प्रश्नं पृच्छति। पूर्वं प्रश्नः भवतः एव आसीत्, उत्तरं शास्त्रेण दत्तम् आसीत्, अधुना शास्त्राणि प्रश्नान् पृच्छन्ति, तेषां उत्तरं दातव्यं भविष्यति।
यदा कक्षा प्रचलति तदा छात्रः प्रश्नान् पृच्छति, आचार्यः उत्तरं ददाति, परन्तु परीक्षायाः प्रचलने शिक्षकः प्रश्नान् पृच्छति, छात्रः उत्तरं ददाति च।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: मध्व गौड़िय वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥