Hindi —
श्रीभगवान ही प्रत्येक जीव को माध्यम मानते हैं। सब श्रीराधारमण जी की ही लीला का प्रकाश है। किसी की प्रतिष्ठा कर रहे हैं तो किसी के हृदय में छुपे प्रतिष्ठा के अभिमान को नष्ट कर रहे हैं। किसी कृत्य से किसी के अन्दर अवस्थित श्रृंगार की सिद्धि को परिलसित कर रहे हैं। बल्कि
अनेक प्रकार की अण्डज उद्विज स्वेदज जरायुज तुरीय बद्ध ज्ञाताज्ञात जड़ चेतन।। जड़ को भी कहा है। अगर मैं ये कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मंदिर प्रांगण में शोभा पाने वाला एक अंजीर एक सौंफ का दाना भी पूर्व जनम में बहुत बड़ा योगी हो तो कोई आश्चर्य नहीं है।
किसी अभ्यर्चना उपासना से श्रीलालजी के चेहरे पे मुस्कराहट प्रदान की हो उसके उस कृत्य से श्रीस्वामिनी जी की दृष्टि उसपर पड़ गयी हो किशोरी की दृष्टि उसपे पड़ी हो तभी उसको सतत् सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
श्रीवृन्दावन का पत्ता-पत्ता सच्चिदानंद है। यहाँ कीट पतंग भी भगवद् स्वरूप है। भगवान की नित्य लीला में प्रगट होने वाला वृक्ष दूर्वा जूही केतकी वकुल मौलश्री श्रीश चम्पा पाटिल ये जितनी वृक्षावली है हिमालय की कन्दराओं में बैठकर युग-युग तक तपस्चर्या व्रत अनुष्ठान जप यज्ञ योग याग अपुर्वत्व सम्भावी संसाधनो के द्वारा ऐसी अनर्थ निवृत्ति की संसिद्धि को उसने प्राप्त किया हो कि उसकी भजन क्रिया सिद्ध हो गयी हो और उसे राधारमण चरण सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ हो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन माध्व गोडेशवर वैष्णवआचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महराज ||
For English –
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Almighty considers each Jeeva as the medium. Every thing is the expanse of Shree Radha Ramanji’s Leela. At one place he is establishing the dignity of an individual at another he is destroying the pride of one’s status. By one action he is anointing the beauty of Shringar within someone. Maybe,
Many types of oviparous, twice born, engendered by sweat, viviparous, the ones who have attained the fourth state, bound, known unknown, innate and conscious. Even innate has been mentioned here. If I may add, it won’t be an exaggeration that even a fig or a grain of fennel lying in the hall of the temple might be a great yogi in the past life!
By any worship or practice, one has been able to please Shree Lalju thereby bringing a smile on his lips and it has been noticed by Shree Swaminiju and the moment Shree Kishoriju glanced at him, instantly he has been blessed with eternal good fortune.
Each and every leaf or the blade of grass of Shree Dham Vrindavan is Sadchiddananda. Every worm or insect is also Divine. All the trees, grass, Jasmine, Ketaki, Bakul, Maulshri, Shreesh, Champa, Paatil etc, all are those great yogis and ascetics who seated in the caves of the Himalayas for ages practicing different austerities, japa, tapa, yoga, etc, have been able to burn all the past karmas and the Bhajan has now fructified into the ‘Charan Sewa’ of Shree Radha Ramanji!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
For Sanskrit —
श्री ईश्वरः स्वयं प्रत्येकं जीवं माध्यमं मन्यते। सर्वं श्री राधारमण जी की लीला प्रकाश। कस्यचित् सम्मानं कुर्वन् कस्यचित् हृदये निगूढं प्रतिष्ठागर्वं नाशयसि । केनचित् कर्मणा कस्यचित् अन्तः वर्तमानस्य मेकअपस्य सिद्धिः प्रतिबिम्बिता भवति ।
अनेक प्रकार अण्डज, उद्विज, स्वेदज, गर्भाशय, तुरिया, बद्ध, ज्ञात, निर्जीव, चेतन। मूलं च कथ्यते । न अतिशयोक्तिः स्यात् यदि अहं वदामि यत् मन्दिरपरिसरं शोभयति पिप्पली वा मेथीबीजम् अपि पूर्वजन्मनि महान् योगी आसीत्, अतः न आश्चर्यम्।
यदि सः श्रीलालजी इत्यस्य मुखस्य उपरि कस्यापि प्रार्थनायाः पूजायाः च माध्यमेन स्मितं आनयत्, अथवा तस्य कार्यस्य कारणेन श्री स्वामिनी जी इत्यस्य दृष्टिः तस्य उपरि पतिता, अथवा यदि कस्यापि युवतीयाः दृष्टिः तस्य उपरि पतिता, तर्हि केवलं सः एव निरन्तरं सौभाग्यं प्राप्नोति।
श्रीवृन्दावनस्य प्रत्येकं पत्रं सच्चिदानन्दम्। अत्र कीटपतङ्गा अपि ईश्वररूपाः। भगवान् दुर्वा जूहि केतकी वकुल मौलश्री श्रीश चम्पा पाटिल् हिमालयस्य गुहासु युगेषु उपविष्टाः सर्वे वृक्षाः तपः, उपवासं, संस्कारं, जपं, यज्ञ, योग, यज्ञ, अशुद्धि, माध्यमेन सम्भवं संसाधनं, सः तादृशनिवृत्तेः सफलतां प्राप्तवान्।
।परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।
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