श्री राधारमणो विजयते ||
ये बहुत बड़ी गलतफहमी है कि धर्म दुःख मिटाता है। ये कहीं नहीं लिखा कि दुःख मिटेगा। गीता कहती है दुःखालयम् असाश्वतम्।। ये दुनिया दुःखालय है तो दुःख कैसे मिटेगा? दुःख नहीं मिट सकता, दुःख का प्रभाव मिट सकता है।
प्रारब्ध किया है दुःख जीवन में आकर खड़ा होगा पर जिसके जीवन में धर्म है, साधना है, भजन है दुःख के काँटे बिछे रहेंगे और वो मुस्कुराता हुआ उसके ऊपर से चलता रहेगा।
यही जीवन की उपलब्धि है।
परिस्थिति नहीं बदलता धर्म, धर्म स्थिति बदलता है। हम सोचते हैं परिस्थिति बदल जाय, छोटे घर से बड़ा घर, छोटी कार से बड़ी कार। परिस्थिति परिश्रम से बदलती है, स्थिति साधना से बदल जाती है।
हम छोटी से छोटी बात पर प्रभावित हो जाते हैं। लोग आत्महत्या के लिए तैयार हो जाते हैं और एक साधक है बड़ी से बड़ी विपदा भी अपने कंधों पर झेलता है और मुस्कुराता चलता है। उसको देखकर लगता भी नहीं है कि ये किसी परेशानी में होगा। समस्या में होगा।
साधना उस ताप को नष्ट कर देती है।
लोग मिष्ठान्न रबड़ी रसगुल्ला खाकर भी रोते रहते हैं और मीरा विष पीकर भी नाचती रहती है। प्रभाव का फरक है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
It is a very big misunderstanding that Dharma eradicates sorrow. It is not written anywhere that the miseries will not be there. The Gita says, ‘Dukkhaalayam ashaashwattam’|| The world is full of miseries so how can you say that they will be eradicated? The sorrow can’t go but the effect of sorrow can be removed.
The sorrows depend on ones fate or Prarabdha but the one who has Dharma, Sadhana, has Bhajan, even though the thorns of sorrow will be all around but the individual will walk over them smilingly.
This is the achievement of human birth!
Dharma doesn’t change the situation, it changes one’s outlook or state. We want the situation to change, a bigger house than a smaller one, a bigger car than a smaller one, etc. The situation changes with hard work wheras the state or position changes with Sadhana.
We get affected by the smallest of things. People even start contemplating suicide whereas the Sadhak smilingly bears it on his shoulders and walks on his life path. Seeing him, you won’t be able to understand that this person is in so much trouble or problem.
The Sadhana destroys the sufferings!
People eat Rasagullas or Rabari but still keep on weeping whereas Meera keeps on dancing even after drinking poison. This is the difference because of the effect!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
धर्मः दुःखं निवारयति इति महती भ्रान्तिः। शोकः गमिष्यति इति न कुत्रापि लिखितम्। गीता वदति दुःखालयं असश्वतं। अयं संसारः शोकस्थानम् अस्ति, अतः शोकस्य समाप्तिः कथं भविष्यति ? शोकः न गन्तुं शक्नोति, दुःखस्य प्रभावः गन्तुं शक्नोति।
जीवने दुःखम् आगमिष्यति इति निर्णयः कृतः, परन्तु यस्य जीवने धर्मः, साधना, भजनः च सन्ति, तस्य दुःखस्य कण्टकाः तत्रैव तिष्ठन्ति, सः तान् उपरि स्मितेन चरति एव।
इति जीवनस्य सिद्धिः ।
धर्मः परिस्थितेः परिवर्तनं न करोति, धर्मः परिस्थितेः परिवर्तनं करोति। वयं मन्यामहे यत् परिस्थितिः परिवर्तनीया, लघुगृहात् बृहत्गृहं यावत्, लघुकारात् बृहत्कारं प्रति। परिश्रमेण स्थितिः परिवर्तते, साधनेन परिस्थितिः परिवर्तते।
वयं लघुतमवस्तूनाम् प्रभावं प्राप्नुमः। जनाः आत्महत्यां कर्तुं सज्जाः भवन्ति तथा च एकः साधकः अस्ति यः स्कन्धेषु बृहत्तमानि अपि आपदानि वहन् स्मितं कुर्वन् अस्ति। तं पश्यन् अपि न दृश्यते यत् सः किमपि विपत्तौ भविष्यति। विपत्तौ भविष्यति।
साधना तं तापं नाशयति।
मधुरं राबरी रसगुल्लां खादित्वा अपि जनाः रोदन्ति, मीरा च विषं पिबन् अपि नृत्यति एव। तत्र प्रभावे भेदः ।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडिय वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज..