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Pundrik ji Sutra 3/05/2024

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03 May

By Pundrik Goswami

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Pundrik ji Sutra 3/05/2024

Hindi —

एक चीज हमारे समझ में नहीं आती जिससे कई अन्य धर्मों से हमारा उस विषय में संवाद होता है कि “क्या भगवान बच्चा हो सकता है, क्या भगवान ऐसे खेल सकता है, क्या भगवान ऐसे जङ्गल में जा सकता है, क्या भगवान ये होता है ?

वो तो परे होना चाहिए वो तो इन सबसे परे है ?भगवान तो महान होता है क्या पत्नी के लिए भगवान रोता है ? (रामजी रोए हैं- हे खग ! मृग ! हे मधुकर श्रेणी)। क्या भगवान माखन चुराता है, क्या कपड़े चुराता है चीर चुराता है ??”

मैनें कही – चीर चुराता है ये तो तुम्हें दिखता है पाँच वर्ष का होकर गोपी के कपड़े चुरा लिए ये दिखता है पर सोलह वर्ष का होकर भरी सभा में द्रौपदी को वस्त्र पहना दी ये क्यों नहीं दिखता ? ये भी तो देखना चाहिए।

पाँच वर्ष का खेल करे तो प्रश्न उठता है बड़ा संरक्षण करे तो क्यों नहीं दिखता ?

ईश्वर की परिभाषा शास्त्रों में लिखी – कर्तुम् अकर्तुम् अन्यथाकर्तुम् समर्थ इति ईश्वरः।। जो आप कर सकते हो वो वो भी कर सकता है, जो आप कर नहीं सकते सोच सकते हो आनन्द की बात ये है कि वो वो भी कर सकता है एक और बात जो आप सोच भी नहीं सकते वो वो भी कर सकता है। इसलिए शब्द जुड़ा – “अचिंत्य” , वो चिंतन से परे है।

।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।

Sanskrit

एकं वस्तु वयं न अवगच्छामः यत् वयं अन्यैः बहवैः धर्मैः सह तस्य विषये किमर्थं वार्तालापं कुर्मः, “किं ईश्वरः बालकः भवितुम् अर्हति, ईश्वरः एवं क्रीडितुं शक्नोति, ईश्वरः एवं वनं गन्तुं शक्नोति वा, ईश्वरः एतादृशः भवितुम् अर्हति वा?”

सः परः भवितुमर्हति, सः सर्वस्मात् परः अस्तिईश्वरः महान् अस्ति, ईश्वरः स्वपत्न्याः कृते रोदिति वा? (रामजी रोदिति – हे खग! मृग! हे मधुकर श्रेण)। ईश्वरः घृतं चोरयति वा, वस्त्राणि चोरयति वा चीराणि चोरयति वा??

अहं अवदम् – भवन्तः पश्यन्ति यत् सः चीराणि हरति। पञ्चवर्षे सः गोपिस्य वस्त्रं अपहृतवान् इति द्रष्टुं शक्नुथ, परन्तु षोडशवर्षे जनसभायां द्रौपदीं परिधापितवान् इति किमर्थं न दृश्यते? एतदपि द्रष्टव्यम् ।

यदि पञ्चवर्षपर्यन्तं क्रीडा क्रियते तर्हि प्रश्नः उद्भवति यत् यदि महती आश्रयः अस्ति तर्हि किमर्थं न दृश्यते?

ईश्वरस्य परिभाषा शास्त्रेषु लिखिता अस्ति – कर्तुम् अकारतुम् अनन्यकर्तुम् समर्थः इति ईश्वरः। यत् त्वं कर्तुं शक्नोषि, सः अपि कर्तुं शक्नोति, यत् त्वं कर्तुं न शक्नोषि, तत् त्वं चिन्तयितुं शक्नोषि। सुखदं वस्तु अस्ति यत् सः तदपि कर्तुं शक्नोति, एकं अपि कार्यं यत् भवन्तः चिन्तयितुं अपि न शक्नुवन्ति, सः अपि कर्तुं शक्नोति। अत एव शब्दः योजितः – “अचिन्त्य”, चिन्तनात् परम् अस्ति।

..परमाराध्या : पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।

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Shri Manmadhava Gaudeshwar Vaishnava Acharya Shri Pundrik Goswami Ji, is the Grandson of Famous Saint Shri Atul Krishna Goswami Ji Maharaj & son of famous Bhagwat orator Shri Shribhuti Krishna Goswami ji maharaj. He belongs to the family of Shri Gopal Bhatt Goswami ( One of the Famous Six Goswamis of Vrindavan who were inspired and initiated by himself Shri Chaitanya Mahaprabhu) who established the Radha Raman Temple in Vrindavan in 1542 and also his samadhi exists within the temple premises. Maharaj Sri is the 38th Acharya in the lineage of Gaudiya Parampara.

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