धर्म करिए पर उस धर्म की ओट में कपट मत करिए। कपट का अर्थ है आडम्बर। मानस में राम जी ने स्पष्ट कहा-
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।
कपट नहीं पसंद है।
आपको श्रीठाकुरजी के सामने रोना आ रहा है तो राइए, रोना नहीं आ रहा है तो मत रोइए। जबरदस्ती रुमाल में विक्स लगाकर क्या रोने की जरूरत है? ऐसे घड़ियाल के आँसू बहुत खतरनाक होते हैं। आपकोभक्ति है तो करिए, नहीं है तो मत करिए। भगवान के सामने मत बनना।
दुनिया के सामने बन भी लो तो कोई चक्कर नहीं। जब दुनिया एक नाटक चल रहा है तो तुम भी नाटक कर लो। कौई समस्या नहीं है। लेकिन श्रीठाकुरजी के सामने अभिनय मत कर देना। क्योंकि अगर उसने तुम्हारे सामने अभिनय कर दिया तो बड़ा लेना- देना हो जाएगा। वहाँ नहीं।
कपट नहीं। दुनिया को बताने वाला विषय नहीं है। जिसने भगवान को पाया है वो फिर वो और किसी को नहीं पा सकता। भर गयी जगह। जिसने पूर्ण पा लिया फिर वो अपूर्णता का अनुभव कैसे करेगा? अगर वस्तु भरने के बाद कोई जगह होती है तब कुछ भरा जाता है पर जब ऐसी वस्तु भर गयी जिसकेबाद कुछ और भरने की जगह ही नहीं बची।
भगवद् प्राप्ति पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
ये उसकी स्थिति है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Practice Dharma but kindly don’t deceive or be a hypocrite in the garb of Dharma. ‘Kapat’ means hypocrisy. In the ‘Ramcharitmanas’ Lord Rama says-
‘Nirmal mana jana so mohi paava| Mohi kapat chhal chhidra na bhaava||’
He dislikes hypocrisy!
If you feel like weeping in front of Thakurji then please do so, if you don’t want to weep, don’t! What is the need to apply Vicks to your hanky and shed artificial tears? Such artificial tears are very dangerous! If you have ‘Bhakti-Bhava’ then be a Bhakta, if not don’t pretend! Please don’t do any drama in front of God!
If at all you are keen on pretending then do so in front of the world. When all that is going on is said to be a drama, you too can show acting skills! No problem! Please refrain from doing any pretence in front of Shree Thakurji. Because, if He decides to do some acting then you’ve had it! Not here, please!
No hypocrisy! The one who has attained God will not want anything else. Because, there is no empty space left. The one who has got hold of the whole, how will he experience any void? If you have any material thing then you can add more to it if you want but after attaining the whole, there will be no desire or place for anything else.
‘Bhagwad Prapti’ or God- realisation is, ‘Poornamadaha: poornamiddam poornaat poorna muddachyattey’|
Such is the state!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
धर्मं आचरन्तु किन्तु तस्य धर्मस्य आच्छादनेन वञ्चनं न कुर्वन्तु। पाखण्डस्य अर्थः आडम्बरः । राम जी स्पष्टतया मनसि उक्तवान्-
शुद्धं मनः जनान् आकर्षयिष्यति। मोहि, वञ्चन, कपट, मा अनुभूति।
धोखाधड़ी न रोचते।
यदि श्री ठाकुरजी के सम्मुख रोदने का इच्छा होता तो रोद, यदि रोदने का इच्छा न हो तो मा रोद। किं विक्सं बलात् गमले स्थापयित्वा रोदितुम् आवश्यकता अस्ति? एतादृशाः ग्राहस्य अश्रुपाताः अतीव भयङ्कराः भवन्ति । यदि भक्तिः अस्ति तर्हि कुरु, यदि न तर्हि मा कुरु। ईश्वरस्य पुरतः मा भवतु।
लोकस्य पुरतः एकः भूत्वा अपि समस्या नास्ति। यदा जगति नाटकं प्रचलति तदा भवन्तः अपि नाटकं कुर्वन्ति। तत्र समस्या नास्ति। परन्तु श्री ठाकुरजी के समक्ष अभिनय न करें। यतः यदि सः भवतः पुरतः अभिनयं करोति तर्हि महत् कार्यं भविष्यति। न तत्र ।
न धोखाधड़ी। न तु लोकाय कथनीयः विषयः। यः ईश्वरं लब्धवान् सः अन्यं कञ्चित् न लभते। स्थानं पूरितम् अस्ति। सिद्धिं प्राप्तः तदा कथं अपूर्णतां अनुभविष्यति। यदि वस्तु पूरयित्वा किञ्चित् स्थानं भवति तर्हि किमपि पूर्यते परन्तु यदा तादृशं वस्तु पूरितं भवति तदा अन्यत् किमपि पूरयितुं स्थानं न अवशिष्यते।
भगवद् प्राप्ति पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुद्च्यते।
इति तस्य स्थितिः ।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा: ।।