श्री राधारमणो विजयते
कार्य कारण व्यक्त और अव्यक्त। आत्मविद्या को जानने वाला व्यक्ति जिसमें आत्म प्रकाश हो गया हो उसके लिए बहुत सहज होता है व्यक्त और अव्यक्त को जानना। जगत व्यक्त है परमात्मा अव्यक्त है। व्यक्त तुरंत आकर्षित करता है अव्यक्त को खोजना पड़ता है पर व्यक्त में छुपे हुए अव्यक्त की जो प्राप्ति कर लेता है वो रस का संधान करना जानता है।
नारियल की खोल में छुपी हुई मलाई को जो निकालना जानता है वो नारियल का रस ले लेता है। परमहंस का क्या स्वभाव है? दूध और पानी मिलाकर दो तो जैसे हंस दूध पी लेता है और पानी छोड़ देता है ऐसे ही
व्यक्त में छुपे हुए अव्यक्त को जो निकाल लेता है वो निर्मोही हो जाता है। कार्य और कारण। जिसने कारण समझ लिया उसमें सुख और दुःख नहीं होगा। किसी ने मूल कारण का पता लगा लिया कार्य हमें प्रभावित करता है कारण हमें प्रभावित नहीं करता।
कारण का पता चल जाएगा तो उसको बाहर का कार्य प्रभावित नहीं करेगा। पता ही चल गया। अब पता ही है कि सर्प काटता है तो उसका काटना मुश्किल नहीं है आप बच कर निकल जाओगे। उसके दाँत भी तोड़ दो उसके बाद भी अपने स्वभाव से परिणित नहीं होता।
ये जगत कार्य है। सृष्टि का कार्य कारण भाव और व्यक्त अव्यक्त भाव आत्मविद्या से दोनों समझ आती है। ये शरीर कार्य है आत्मा कारण है शरीर व्यक्त है आत्मा अव्यक्त है।
जैसे जब नारियल पक जाते हैं तो अन्दर की मलाई छोड़ देता है हल्की सी झिरी आ जाती है अन्तर आ जाता है ऐसे ही जब साधना पक जाती है तो कार्य और कारण में हल्का सा अन्तर पता चलने लगता है व्यक्त और अव्यक्त में अन्तर पता चलने लगता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The cause and effect are both obvious as well as hidden. The one who knows the Atma Vidya, who has attained enlightenment, for such an individual to understand what is seen and unseen becomes very easy. The world is visible, whereas the Almighty is invisible. What is seen attracts, wheras what is unseen, you need to find it, but one who learns to discover the unseen within the seen is able to realize the divine rasa.
One who is able to see and take out the coconut pulp hidden inside the hard shell of the coconut can enjoy the rasa of the coconut. What is the nature of a Paramhansa? Like, if you give milk mixed with water to a Hansa, it will only take the milk and leaves the water. In the same way;
The one who is able to see the unseen within the seen, he becomes unattached or Nirmohi! Cause and effect! The one who has understood the cause will not be affected by joy or sorrow. The one who has found out the root cause that the effect influences us whereas the cause does not affect us!
If we know the cause then the outer effect or reaction will not affect us. We know now! Now you know that the snake bites so you will be careful and walk away cautiously. Even if you defang it, it will not leave its nature of biting.
The world is the effect. The causal and the effectual nature as well as the visible and invisible nature of the creation can be understood through the Atma Vidya. The physical body is the effect wheras the Atman is the cause. The body is visible but the Atman is invisible.
Like, when the coconut is ripe then it detaches the pulp from the shell then very thin lines appear and a difference takes place, in the same way when the Sadhana grows and ripens then one understands the difference between the cause and effect and also, one visualises the unseen within the seen!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
व्यक्तानि गुप्तानि च कारणानि। आत्मज्ञानं ज्ञात्वा आत्मबोधं प्राप्तस्य व्यक्तं अव्यक्तं च ज्ञातुं सुसुलभम् । संसारः प्रकटः, ईश्वरः अव्यक्तः। व्यक्तं सद्यः अव्यक्तं आकर्षयति, तत् अन्वेष्टव्यं भवति, परन्तु व्यक्ते निगूढं अव्यक्तं प्राप्नोति, सः रुचिं कथं आविष्कर्तुं जानाति।
नारिकेले निगूढं क्रीमं निष्कासयितुं जानाति, नारिकेलरसं गृह्णाति । परमहंसस्य किं स्वरूपम् ? क्षीरं जलं च मिश्रयेत् यथा हंसः क्षीरं पिबति जलं त्यजति ।
व्यक्ते निगूढं निगूढं यो निष्कर्षयति सङ्गरहितः । कार्यं कारणं च । हेतुबोधकस्य सुखं दुःखं वा न भविष्यति। केनचित् मूलकारणं लब्धम्। कारणं अस्मान् प्रभावितं करोति, कारणं अस्मान् न प्रभावितं करोति।
यदि कारणं ज्ञायते तर्हि बहिः कार्यं तस्य प्रभावं न करिष्यति। ज्ञातवान्। इदानीं त्वं जानासि यत् यदि सर्पः दंशति तर्हि तस्य दंशः कठिनः नास्ति, त्वं पलायिष्यसि । दन्तभङ्गोऽपि तस्य स्वभावेन परिणामः न भविष्यति ।
इति जगतः कार्यम्। सृष्टेः कार्यं, कारणभावाः, व्यक्ताः गुप्तभावनाः च, आत्मज्ञानद्वारा अवगन्तुं शक्यन्ते । शरीरं कार्यम् आत्मा हेतुः शरीरं व्यक्तं आत्मा अव्यक्तम्।
यथा नारिकेलं पक्वं जातं तदा क्रीमम् अन्तः त्यक्त्वा किञ्चित् क्रैकं प्रादुर्भूतं भवति, तथैव साधना पक्वं भवति चेत् किञ्चित् कारणकारणान्तरं दृश्यमानं भवति, प्रकटस्य अव्यक्तस्य च भेदः दृश्यमानः भवति। अस्ति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..