महामंत्र का कीर्तन
गोपाल मंत्र को जाप।
आचारज गुण मंजरी
रसिक हमारी छाप
गुरु पूर्णिमा के पावन उत्सव पर हर वर्ष की भांति अमृतसर पीठ पर किये गये गुरु पूर्णिमा के उत्सव पर पूज्य गुरूदेव मनमाधवगौड़ेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी द्वारा इस विषय पर अद्भुत चर्चा की गई।
गुरूदेव ने बताया कि गुरु उपदेश भी देते हैं,गुरु आदेश भी देते है,गुरु आज्ञा भी देते हैं और इन सबसे ऊपर गुरु प्रज्ञया भी देते हैं।
उपदेश का अर्थ है कुछ ऊपर दिखाना बार बार यह स्मरण कराना कि आप जगत के सम्बन्ध में हो पर ठाकुर हमरे राधारमण हम हैं राधारमणके।लौकिक जगत में चाहे हम संसार के ही रहें पर आध्यात्मिक तौर पर हम हमेशा परमात्मा से जुङे रहें।
उपदेश हमेशा भविष्य के लिए होता है।आदेश वर्तमान के लिए होता है।आज्ञा सर्वदा के लिए होती है।
भगवान कृष्ण गीता में अर्जुन को उपदेश, आदेश और आज्ञा देते हैं।उपदेश पर चिंतन करने का अवसर होता है।आदेश पर विचार करने का अवसर होता है।आज्ञा मे जैसे कहा गया है वैसे ही करना है।
उपदेश गुरूदेव सबके लिए करते हैं उसमें से कुछ होते हैं जिन पर गुरूदेव आदेश करते है और उनमे से भी कुछ होते हैं जिन्हे गुरूदेव आज्ञा करते हैं।जैसे किसी को दियासलाई दे दें अपने अपने दिए जला लो यह उपदेश है।आदेश क्या है कि जब मैं दियासलाई जला कर दे दूं कि अपना दिया जला लो और आज्ञा का मतलब है कि मेरे दिए से अपना दिया जला लो और प्रज्ञा का मतलब है कि जब मै अपना दिया ही तुम्हे दे दूं ।यही इन चार चौपाई का मतलब है
उपदेश–महामंत्र का कीर्तन
आदेश–गोपाल मंत्र का जाप
आज्ञा–आचारज गुण मंजरी
प्रज्ञा–रसिक हमारी छाप
उपदेश सार्वजनिक होता है,आदेश निजता के लिए होती है,आज्ञा किसी अन्तरंग के लिए होती है और प्रज्ञा एक के लिए होती है।प्रज्ञा सुमेरू है।
उपदेश में हम सदगुरु के शब्द पहचानते हैं।आदेश में हम सदगुरु के विचार पहचानते हैं।आज्ञा में हम सदगुरु के अनुभव को पहचानते हैं।प्रज्ञा में हम सद्गुरु के आत्मा को पहचानते हैं उनके मूल स्वरूपको पहचानते हैं।आदेश अन्य व्यक्ति या पूछने वाले के लिए हो सकती है पर आज्ञा अपने के लिए ही होती है।अब यह हम पर निर्भर है कि हम यह सम्पति इकट्ठा करें
उपदेश से आदेश की तरफ और आदेश से आज्ञा की तरफ अग्रसर हों। यह शिष्य पर निर्भर है कि वह इसको किस भाव में ग्रहण करता है उसे यह समझ होनी चाहिए कि गुरूदेव ने जो कहा है वह उपदेश है,आदेश है,आज्ञा है या प्रज्ञा ।यह उसके भाव पर निर्भर है जैसा भाव होगा वैसा प्रभाव होगा।जिस तरह हम गुरु के शब्द स्वीकार करते हैं वैसा ही प्रभाव होगा।उपदेश का प्रभाव चुम्बकीय होता है,आदेश का प्रभाव चंदन की तरह होता है।आज्ञा का प्रभाव पारस की तरह होता है।प्रज्ञा का प्रभाव भृंगी कीड़े की तरह होता है।इस बगीचे के यह चार फूल हैं अब यह आप पर है कि आपको कौन सा फूल चाहिए।हम सभी को चाहिए कि आज गुरु वचन पर चलने का प्रण लें और कोशिश करें कि आदेश से प्रज्ञा की ओर बढ़ें
गुरूदेव समर्पणम
06
Jul