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May
Pundrik ji Sutra 11/5/2024
ये जातियों का सम्प्रदायों का प्रथाओं का ज्यादा विचार नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये आदमी के बीच में मात्र भेद ही पैदा करते हैं। अपने लिए पर्याप्त है बस इसकी जानकारी होनी चाहिए।
फल अगर जड़ों की जानकरी रखे तो कहाँ आगे बढ़ पाएगा समय अनुरूप वो पेड़ को छोड़ता भी है और एक नये पेड़ के निर्माण की भूमिका भी बनाता है। जब फल पक जाता है तब वृक्ष से मुक्त हो जाता है और उसके अंदर का बीज एक नये वृक्ष के निर्माण की भूमिका तैयार करता है।
ये शूद्र है ये ब्राह्मण है ये मात्र प्रदर्शन है भारतीय दर्शन ने ये बात कही ये बात तो हमने पकड़ी पर भारतीय दर्शन ने ये भी तो कही तत्वमसिः।। ये स्त्री है ये पुरुष है ये प्रदर्शन है पर जरा एक नजरिए से देखो तो सामने इसके भीतर ईश्वर का अंश है। तो ये दर्शन है।
मात्र स्तर का भेद है ठाकुरजी व्यवस्था कर देंगे। इस भरोसे से एक व्यक्ति के अंदर सन्यास घटता है। सन्यास का मतलव ही है स्ट्रगल से मुक्त हो जाना। एक व्यक्ति समस्त द्वंदों से मुक्त हो जाय द्वैत से मुक्त हो जाय यही तो सन्यास है। दो के विचार से मुक्त हो जाय यही तो सन्यास है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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For English
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Please don’t attach so much of importance to the caste or sects or traditions. This creates unnecessary differences between people.What is needed is only this information.
If the fruit gets stuck to the roots, it can’t grow and in time it has to leave the tree and becomes instrumental in the growth of another tree. When the fruit ripens it falls off and the seed gives birth to one more tree.
Whether he is a Brahmin or a Shudra has been declared by the Smritis, which has been caught by people, but our scriptures also declare, ‘Tattvamasihi’|| She is a woman, he is a man, this is just the outward projection but each one has the Divine spark within. This is true philoshy and the correct understanding.
There is merely a difference in the state but in time, Shree Thakurji will set it right. This belief gives rise to Sannyas. Sannyas means being rid of struggles. When a person is free from all conflicts of duality, he attains Sannyas. Freedom from duality is Sannyas!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
एतेषां जातिसम्प्रदायानां रीतिषु बहु चिन्तनं न कर्तव्यम्। यतः ते केवलं जनानां मध्ये भेदं जनयन्ति। स्वस्य कृते पर्याप्तम्, केवलं भवता तस्य विषये ज्ञातव्यम्।
यदि फलं मूलं जानाति तर्हि कथं वर्धते । कालान्तरे वृक्षं त्यक्त्वा नूतनवृक्षस्य निर्माणे अपि भूमिकां निर्वहति । यदा फलं पक्वं भवति तदा तत् वृक्षात् मुक्तं भवति, तस्य अन्तः बीजं च नूतनवृक्षस्य निर्माणस्य भूमिकां सज्जीकरोति ।
सः शूद्रः, सः ब्राह्मणः, एतत् केवलं प्रदर्शनम् एव, भारतीयदर्शनेन एतत् उक्तम्, अस्माभिः एतत् बिन्दुः गृहीतः, परन्तु भारतीयदर्शनेन अपि एतत् तत्त्वमसी उक्तम्। एषा स्त्री, एषः पुरुषः, एषः प्रदर्शनः, परन्तु यदि भवान् एकदृष्टिकोणेन पश्यति तर्हि तस्य अन्तः ईश्वरस्य एकः भागः अस्ति। अतः एतत् दर्शनम्।
केवलं स्तरस्य भेदः अस्ति, ठाकुरजी व्यवस्थां करिष्यति। एतेन विश्वासेन मनुष्यस्य अन्तः त्यागः भवति । संयस्य अर्थः संघर्षरहितः इति। यदा पुरुषः सर्वविग्रहविहीनः भवति, द्वैतविहीनः भवति तदा एषः त्यागः एव । द्वयविचारविमुक्तत्वं संन्यासः।
परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।
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