श्री राधारमणो विजयते
सबसे पहले हमें गुरु से तिलक की प्राप्ति होती है फिर माला की प्राप्ति होती है। माला में भी कई प्रकार है करमाला जपमाला कंठ माला। फिर हमें गुरु से मंत्र प्राप्त होते हैं। और चौथी चीज गुरु से हमें इष्ट की प्राप्ति होती है। हमारा ईष्ट कौन है?
राधारमण हमारे मीत।।
गुरु से हमें ईष्ट की प्राप्ति होती है। अगर यह मामले फिक्स नहीं हुए हैं अभी तक तो गुरु जी के चरणों में बैठो। नहीं तो हवा वाली बात हो जाएगी।ईष्ट बड़ा महत्वपूर्ण है।
एक हो गया तिलक, करमाला-कंठमाला, मंत्र, ईष्ट। यह चार चीज लगभग सबको पता है। या पता है फिर भी हमने ध्यान नहीं दिया। राजनीतिक करके रखा है।
पांचवी एक चीज है कि गुरु से शिष्य को ग्रंथ की प्राप्ति होती है। जैसे अपने यहाँ का प्रधान विषय है श्रीमद् भागवत। यह सब प्राप्त होता है।
एक चीज और भजन के साथ कभी-कभी स्पष्ट और कभी-कभी गुप्त, कभी-कभी सामने और कभी-कभी भजन में प्रेरणा देते हैं एक चीज और मिलती है कि भगवान के साथ हमारा कौन सा संबंध है? नहीं तो भजन की बात पूरी नहीं बनेगी।
हो सकता है पहले से ही आपके अंदर वह बात हो लेकिन गुरु उसको अप्रूव करता है। या कहीं ना कहीं भजन में उसकी प्रेरणा देता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
First of all, we get the Tilak from our Sadguru and then we recieve the Mala. There are different types of Malas, one is the Kara-Mala, then there is the Japa-Mala and the Kanthi-Mala. Then we are given the Mantra. The fourth thing we are given is our Ishtha. Who is our Ishtha?
‘Radha Raman humarrey meeta’||
Our Sadguru gives us our Ishtha. If these things are not settled as yet then sit at the Lotus Feet of your Sadguru! Or else, everything will go up in thin air! The Ishtha is very important!
So, the first is the Tilak, then comes the ‘Kara-Mala or the Kanthi-Mala’, Mantra and the Ishtha. Every one knows these four things. It could also be that in spite of knowing, we haven’t paid attention! As though, we are behaving like a politician!
The fifth and a very important thing is to receive a ‘Granth’ from the Sadguru. Like, our principal text is Srimadbhagwat. One gets all these things.
One more thing along with Bhajan, which at times is open and sometimes is a secret, at times openly or sometimes during the Bhajan you receive this insight about your relationship with the Divine! Without this, the Bhajan is incomplete.
It is quite possible that you have it within you from before but your Sadguru puts the stamp of approval! Some times, he gives you the insight about it through your Bhajan.
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
प्रथमं गुरुतः तिलकं प्राप्नुमः ततः माला प्राप्नुमः। कर्मला, जपमाला, कण्ठमाला इत्यादयः अनेकाः प्रकाराः सन्ति । अथ गुरुतः मन्त्रान् प्राप्नुमः। चतुर्थं च वस्तु अस्ति यत् वयं गुरुतः आशीर्वादं प्राप्नुमः। अस्माकं इष्टा कः ?
राधारमणः अस्माकं मित्रम् अस्ति।
गुरुतः इष्टं प्राप्नुमः। यदि एते विषयाः अद्यापि न निश्चिन्ताः तर्हि गुरुजी-चरणयोः उपविशन्तु। अन्यथा तथ्यविषयं भविष्यति। अनुग्रहः अतीव महत्त्वपूर्णः अस्ति।
तिलकः करमला-कण्ठमाला मन्त्रः इष्टः एकोऽभवत्। एतानि चत्वारि वस्तूनि प्रायः सर्वे जानन्ति । अथवा ज्ञातव्यं तथापि वयं ध्यानं न दत्तवन्तः। राजनैतिकं कृतम् अस्ति।
पञ्चमं यत् शिष्यः गुरुतः शास्त्रं प्राप्नोति। यथा अत्र मुख्यविषयः श्रीमद्भागवतः। एतत् सर्वं सिद्ध्यति।
एकं वस्तु वयं स्तोत्रैः सह प्राप्नुमः, कदाचित् स्पष्टं कदाचित् गुप्तं, कदाचित् प्रकटं कदाचित् प्रेरणादायकं च, तत् अस्ति यत् अस्माकं परमेश्वरेण सह किं सम्बन्धः अस्ति? अन्यथा स्तोत्रस्य विषयः पूर्णः न भविष्यति।
कदाचित् तत् वस्तु भवतः पूर्वमेव अस्ति किन्तु गुरुः तत् अनुमोदयति। अथवा स्तोत्रे क्वचित् तदर्थं प्रेरणाम् अयच्छति।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥