श्री राधारमणो विजयते||
जब मूल बात को जानोगे तब उसके मूल की पहचान होगी। जब तक सियाराम को जानोगे नहीं तब तक सियाराम मय जग को कैसे जान पाओगे? सियाराम कौन हैं? नेति नेति वेद पुकारे।।
कौन जान सका?
पर फिर भी अगर मैं स्पष्ट करूँ, सरल करूं ऐसा मेरा अनुभव कहता है आप मानो ना मानो आप स्वतंत्र हो
लौकिक दृष्टि से राम का मतलब होता है मर्यादा। आप पूरी दुनिया में कहीं भी कोई चीज मर्यादित देखो।
किसी व्यक्ति को, किसी व्यापार को, किसी व्यवस्था को, किसी श्रोता को, किसी के विवाह को, किसी आयोजन को, किसी मंदिर को किसी भी चीज को बड़ी मर्यादा से देखो।
चूक नहीं जाना, वहीं खड़े राम को तुरंत प्रणाम कर लेना।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
When you will know the origin only then will you be able to understand what is what! Till such time you don’t know Shree Siya Rama, how can you see the entire world to be their manifestation? Who is Siya Rama? ‘Neti neti kahi Veda pukarey’||
Who has been able to know the Almighty?
Yet, if I want to clarify it and to make it simple I am sharing my experience, whether you agree or not is your choice!
From the worldly point of view, Rama means dignity. When ever you come across any dignified thing in the world, it represents Shree Rama.
Any individual or any business or any arrangement or any listener or Shrota, any wedding or any function or a temple or any place of worship where you notice a very pronounced dignity!
Please don’t miss the opportunity, just offer your Pranams to the embodiment of Shree Rama right there!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
यदा भवन्तः मूलभूतं वस्तु ज्ञास्यन्ति तदा तस्य उत्पत्तिः चिह्निता भविष्यति। यावत् त्वं सियारामं न जानासि तावत् सियारामं विना कथं जगत् ज्ञातुं शक्नोषि ? सियारामः कः ? नेति नेति वेद कहा।
कः ज्ञातुं शक्नोति स्म ?
परन्तु तदपि यदि अहं तत् स्पष्टीकरोमि सरलीकरोमि च तर्हि मम अनुभवः वदति यत् भवान् स्वतन्त्रः अस्ति वा विश्वासयितुं वा न वा।
लौकिकदृष्ट्या राम इत्यर्थः गौरवम् । भवन्तः जगति कुत्रापि किमपि सीमितं पश्यन्ति।
कश्चन व्यक्तिः, कोऽपि व्यापारः, कोऽपि व्यवस्था, कोऽपि प्रेक्षकः, कस्यचित् विवाहः, कोऽपि आयोजनः, कोऽपि मन्दिरः, किमपि महता गौरवेण पश्यन्तु।
मा त्यजन्तु, तत्क्षणमेव तत्र स्थितं रामं नमस्कुर्वन्तु।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।