श्री राधारमणो विजयते
गुरु द्वारा शिष्य को सबसे पहले तिलक की प्राप्ति होती है फिर माला, मंत्र और चौथी चीज ईस्ट की प्राप्ति होती है। फिर शिष्य को ग्रंथ की प्राप्ति होती है, भगवान से संबंध की प्राप्ति होती है।
और सातवीं गुरु से शिष्य को स्वरूप की प्राप्ति होती है। जो भगवान के साथ आपका संबंध है उस संबंध के अनुसार आपका स्वरूप है। वह कल्पना नहीं है वह भावना है। हम दुनिया में कल्पना करके तो बहुत सारे रूप धरते हैं। कोई शीशे में देखकर सोचता है कि मैं अक्षय कुमार लग रहा हूँ। चाहे लग नहीं रहा हो फिर।
यह तो उसकी कल्पना है। पर वहीं दूसरी तरफ शिष्य को भावना में स्वरूप की प्राप्ति होती है। यह पता होना चाहिए।
आप सोचोगे कि हमने कभी गुरु जी से पूछा नहीं, हमने कभी समझा नहीं, उन्होंने कभी बताया नहीं। यह चीजें हो सकती हैं तो उसका उपाय यह है कि
हम अपना भजन करें और भजन में इस बात की जिज्ञासा करें तो गुरुदेव किसी न किसी माध्यम से इसकी प्रेरणा हमें प्रदान कर देते हैं। निश्चित प्रेरणा प्रदान कर देते हैं और जब वह प्रेरणा प्रदान कर देते हैं तो वह
प्रत्यक्ष, प्रतिष्ठित, इस परंपरा का कोई वरिष्ठ वैष्णव को, अपना अनुभवी कोई वैष्णव, कोई बड़ा गुरु भाई हो या कोई आचार्य के आसन पर बैठा हो उसके साथ बैठकर उस विषय में की यह हमें संकेत प्राप्त हुआ है आप इस पुष्ट कर दीजिए। ऐसे कर लेना चाहिए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The disciple first of all gets the Tilak from the Sadguru, then Mala, followed by Mantra. The fourth thing is Ishtha. Then the disciple gets the Granth and his/her relationship with the Divine is established.
The seventh thing that the disciple gets is the Swaroop. The Swaroop depends on the relationship you have established with the Divine. It is not imaginary, instead it is a Bhavana or an emotion. One can assume different forms by imagining them. Someone looks in the mirror and imagines himself to be Akshay Kumar, even if there is no resemblance.
This is just an imagination. On the other hand, when the disciple emotes then he gets the Swaroop. You should know this!
You may think that I have never asked anything to my Guruji, I have never understood anything and neither has he explained anything. These are a possibility and the way forward is;
We should engage in our Bhajan and in the Bhajan ask our Gurudev. He will satisfy your query in some form or the other. He positively will give you an indication and when he provides the insight, then
Manifest, installed or well known, a senior or an experienced Vaishnav, a senior Guru-Bhai or an Acharya seated on the Peethasana, sitting with him discuss and clarify the indication or your experience. You should move forward in this manner.
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
प्रथमं शिष्यः गुरुतः तिलकं प्राप्नोति, ततः माला, मन्त्रं च प्राप्नोति चतुर्थं वस्तु पूर्वम्। ततः शिष्यः शास्त्रमाप्नोति ईश्वरसम्बन्धं च प्राप्नोति।
सप्तमगुरुतः च शिष्यः स्वरूपमाप्नोति। भवतः रूपं ईश्वरेण सह भवतः सम्बन्धानुसारम् अस्ति। सा कल्पना न, भावः एव। वयं कल्पयित्वा जगति अनेकानि रूपाणि गृह्णामः। कश्चित् दर्पणं दृष्ट्वा अहं अक्षयकुमार इव दृश्यते इति मन्यते। यद्यपि तत् न अनुभूयते।
एषा तस्य कल्पना। अपरं तु शिष्यः भावेषु रूपं लभते। अवश्यमेव एतत् ज्ञातव्यम्।
भवन्तः चिन्तयिष्यन्ति यत् वयं कदापि गुरुजीं न पृष्टवन्तः, वयं कदापि न अवगच्छामः, सः अस्मान् कदापि न अवदत्। यदि एतानि वस्तूनि भवितुम् अर्हन्ति तर्हि समाधानं तत् एव
यदि वयं स्वस्य भजनं कुर्मः, भजनस्य विषये एतस्य विषये जिज्ञासुः भवेम, तर्हि गुरुदेवः अस्मान् केनचित् माध्यमेन वा एतां प्रेरणाम् अयच्छति। किञ्चित् प्रेरणां ददाति यदा च प्रेरणां ददाति तदा सः
कृपया इस परम्परा के वरिष्ठ वैष्णव, इस परम्परा के वरिष्ठ वैष्णव, अपने अनुभवी वैष्णव, ज्येष्ठ गुरु भ्राता या आचार्य के आसने उपविष्ट केने भी सह उपविष्ट इस बात की पुष्टि करें, कृपया यह पुष्टि करें। एवं कर्तव्यम् ।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥