श्री राधारमणो विजयते
पिपासा बनी रहना ही प्रयास है। प्रयास किस चीज का? श्री कृष्ण की प्रतिक्षा का प्रयास। वो कैसे होगा? बार-बार उस रस को पीते रहो। गोपी कह रही हैं- उद्धव! उस कृष्ण को छोड़ना सरल है, उसकी कथा को छोड़ना सबसे कठिन है।
‘‘दुष्त्यज तत् कथा’’
वह चला गया कोई बात नहीं, उसकी कथा नहीं छोड़ी जा सकती। बारंबार वह मिलती रहेगी तो आपकी प्रतीक्षा बढ़ती रहेगी। इंतजार बढ़ता रहेगा।
जब आप धीरे-धीरे इंतजार से प्रयास करते रहोगे तब आप आपको खुद अनुभूतियां आपके रास्ते पर बिखरी हुई मिलती जाएँगी। पुरंजनोपख्यान तुम्हारी असलियत देता है कि तुम कहाँ के हो और तुमको कहाँ तक जाना है;
जब गोविंद के इंतजार करने की कोशिश करना शुरू करोगे तो उस दिन तुमको पता चल जाएगा कि यह दुनिया वास्तव में तुम्हारी है ही नहीं है। हैं तो केवल श्रीराधारमण हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The persistance of the longing or in other words the thirst itself is the ‘Prayaas’ or practice. The practice to long for Shree Krishna! How can one do it? Keep on drinking that Rasa! The Gopi says, ‘Uddhav! To leave Krishna is easy but to give up His Katha is impossible!
‘Dushtyajja tatt Katha’.
He has left us, fine; but we can’t give up His Katha. If we keep on getting it, our longing for Him will keep on increasing. The patient wait will keep on growing.
When you keep on practicing waiting patiently then you will find divine experiences scattered on your path. The ‘Purranjanopaakhyan’ tells you the reality about where you belong and what is your destination;
When you practice to patiently wait for Govind, you will automatically realize that in fact this world doesn’t belong to you. If it belongs to someone, it is Shree Radha Raman.
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||