श्री राधारमणो विजयते
गुरु का काम यही तो है एक तरफ गोविंद खड़ा है एक तरफ भक्त खड़ा है, जैसे एक कन्या और वर खड़ा हो तो बीच में पंडित जी बैठते हैं, मंत्रोपचार करते हैं और दोनों का हाथ से हाथ थमा देते हैं, तु पत्नी हो गई तु पति हो गया। बात खत्म हो गई।
गुरु का काम भी इतना ही होता है जीव और ब्रह्म को पड़कर हाथ थमा देते हैं। तू प्रिय हो गया, तू प्रियतम हो गया। बस बात खत्म हो गई।
यह ब्रह्म विवाह है।
बस फिर भी इसमें थोड़ा सा अंतर है। पुरोहित और गुरु में थोड़ा सा अंतर होता है, पुरोहित कब लेता है? जब पानी हाथ में होता है, सद्गुरु कब लेता है? जब पानी आँख में होता है। इसका अपना प्रभाव है। इसलिए
उन्हीं के हाथ में जब हाथ हमें किस बात की चिंता
हमारे हैं श्रीगुरुदेव हमें किस बात की चिंता….
||परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ||
II Shree Radharamanno Vijayatey II
The Guru enacts the role like that of the Purohit who presides over the matrimonial service by chanting the sacred mantras and gives the hand of the bride in the hand of the groom and declares them to be husband and wife wheras in this case on one hand is Govind and on the other is the Bhakta, the Guru unites them!
The Guru gives the hand of the Jeeva over to Brahma. The devotee becomes the lover and the Divine becomes the beloved. That’s it!
‘THIS IS BRAMHA VIVAHA’!
Still, there is a slight difference. The difference between the Guru and Purohit is that the Purohit gives the water in the hand of the bride, whereas the Guru blesses you with tears in the eyes. This is a very important aspect. That’s why;
‘Unhi kay haath mein jab haath hummey kis baat kee chinta I
Humarrey hain Shree Gurudev, hummey kis baat ki chinta….
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
एतत् गुरुकार्यम् अस्ति। गोविन्दः एकपार्श्वे स्थितः भक्तः अपरतः स्थितः, यथा वरवधूः स्थिताः, ततः पण्डितजी मध्ये उपविश्य, मन्त्रचिकित्सां कृत्वा उभौ समर्पयति, त्वया भार्या जातः। पतिः कृतः । प्रकरणं समाप्तम्।
गुरोः कार्यमपि तथैव, जीवब्रह्माभ्यां समर्पयति। त्वं प्रियः अभवसि, त्वं प्रियतमः अभवः। तत् एव, प्रकरणं समाप्तम्।
इति ब्रह्मविवाहः।
अद्यापि किञ्चित् भेदः अस्ति। यजमानस्य गुरुस्य च किञ्चित् भेदः अस्ति, कदा पुरोहितः तत् गृह्णाति? यदा जलं हस्ते भवति तदा सद्गुरुः कदा गृह्णाति? यदा नेत्रेषु जलं भवति। तस्य स्वकीयः प्रभावः भवति । अतः
यदा अस्माकं हस्ताः तेषां हस्ते सन्ति तदा किमर्थं चिन्ता कर्तव्या।
श्री गुरुदेव अस्माकं, किमर्थं चिन्ता कर्तव्या?
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥