वृंदावन जाकर के क्या करें? कई लोग हैं जाकर घूमते हैं, कई लोग हैं भैया हम संतो के दर्शन के लिए जा रहे हैं, कई लोग हैं ठाकुरजी के दर्शन के लिए जा रहे हैं। यह सब श्रेष्ठ बात है।
आप ब्रज में बैठकर श्रीप्रियाप्रियतम् का भजन करो। हालांकि संत दर्शन, भगवत दर्शन, कथा श्रवण भजन का ही एक रूप है। अलग नहीं है। भजन का ही उसमें अंश है। पर मैं एक बात और कहूं
अगर आप विशुद्ध भजन में रत हो जाओगे तो आपको संतो को नहीं खोजना पड़ेगा, संत कहीं ना कहीं खोजते हुए आपके पास आ जाएंगे। आप भजन करोगे तो आपको ठाकुरजी को नहीं खोजना पड़ेगा, ठाकुरजी खोजते खोजते आपके पास आ जाएंगे।
हजारों ऐसी कथाएं हम सब ने भक्तमाल आदि ग्रंथों में पढ़ी है।
भजन करने वाले की गरज तो स्वयं भगवान करते हैं। इसलिए श्रीगोपालभट्टगोस्वामी जी ने आकर ज्यादा खोज नहीं की , श्रीराधाकुंडधाम में बैठकर आपने भजन किया। किशोरीकुंड के पास बैठकर वृक्ष के नीचे आपने भजन किया।
सोचा मैं विशुद्ध चैतन्य भाव से स्थित होकर श्रीराधामाधव का भजन करूंगा तो उनके अनुगत जितने और आचार्य हैं वह कहीं ना कहीं तो मुझे प्राप्त हो ही जाएंगे और यही हुआ।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Why does one go to Vrindavan? Many people go there for sight-seeing or as a tourist, many people say that they are going for the Darshan of Sadhus & Saints, some people go for the Darshan of ‘Shree Thakurji’. All these are very good and noble objectives!
When you go to Braj, sit down quietly and do the Bhajan of ‘Shree Priya-Priyatam’. However, the Darshan of saints, Bhagwat Darshan or ‘Katha-Shravan’ are all a form of Bhajan only. They are not separate! Bhajan is a part of all these activities! But I would like to add one more thing here;
If you are immersed in ‘Vishuddha-Bhajan’ then you will not have to go out in search of saints, instead the saint will come looking for you! If you are doing Bhajan then you won’t have to go looking for ‘Shree Thakurji’, but He will come looking for you!
We have read thousands of such stories in ‘Bhaktmaal’ and other texts!
The Lord himself will be anxious to see you! That is why, ‘Shree Gopal Bhatt Goswamiji’ did not go here or there looking for God, he went and sat down with utmost devotion at ‘Shree Radha Kunda Dham’ and did Bhajan. He sat under a tree on the bank of Shree ‘Kishori-Kunda’ and did Bhajan!
He thought that I will focus my attention with a single pointed devtion, be immersed in the sacred ‘Chaitanya-Bhava’ and do the Bhajan of Shree Radha-Madhava. Surely, one out of the many Acharyas who are initiated in this tradition will see me at some point in time and exactly this is what happened!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
वृन्दावनं गत्वा किं कर्तव्यम् ? अनेकाः जनाः गत्वा परिभ्रमन्ति, बहवः जनाः गच्छन्ति भ्राता, वयं साधुं द्रष्टुं गच्छामः, बहवः जनाः ठाकुरजीं द्रष्टुं गच्छन्ति। एतानि सर्वाणि वस्तूनि उन्नतानि सन्ति।
ब्रजे उपविश्य श्रीप्रियातमस्य भजनं करोषि। यद्यपि संतदर्शनं, भागवतदर्शनं, कथाश्रावणं भजनस्य एकरूपमेव । न भिन्नः । तत्र स्तोत्रस्य भागः अस्ति। किन्तु एकं अपि वदामि
यदि भवन्तः शुद्धभजनस्य मग्नाः भवन्ति तर्हि भवन्तः साधून् अन्वेष्टुं न प्रवृत्ताः भविष्यन्ति, कुत्रचित् अन्वेषणं कुर्वन्तः सन्तः भवतः समीपम् आगमिष्यन्ति। यदि भजनं करोति तर्हि ठाकुरजीं अन्वेष्टुं न प्रयोजनं भविष्यति, अन्वेषणं कुर्वन् ठाकुरजी भवतः समीपम् आगमिष्यति।
एतादृशाः कथाः सहस्राणि अस्माभिः सर्वैः भक्तमालादिपुस्तकेषु पठिताः सन्ति।
भजनं कुर्वतः एव ईश्वरस्य आवश्यकता वर्तते। अतएव श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने आने के बाद ज्यादा खोज ना किया, श्रीराधाकुंध में बैठकर आप भजन किया। किशोरीकुण्डस्य समीपे उपविश्य वृक्षस्य अधः भजनं कृतवान् ।
मया चिन्तितम् यत् यदि अहं शुद्धचेतनायां स्थित्वा श्रीराधामाधवं पूजयामि तर्हि अन्ये सर्वे आचार्याः ये तस्य अधः सन्ति, तान् अवश्यमेव कुत्रचित् प्राप्नुयाम् इति च एतत् अभवत्।
.. परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।