श्री राधारमणो विजयते
ठाकुरजी कैसे हैं? सूर्य की तरह हैं। भक्त कैसा है? भक्त कमल की तरह है। ठाकुरजी सूर्य की तरह हैं, भक्त कमल की तरह हैं और गुरुदेव सरोवर की तरह हैं।
जब वो कमल सरोवर में रहता है तो सूर्य की पहली किरण ही उसे खिला देती है और अगर उसको सरोवर से बाहर निकाल दो तो सूर्य पहली क्या, बारह घंटे कि चोट लगा ले, उस कमल को जला सकता है, खिला नहीं सकता। कितना जोर लगा दे उसको खिला नहीं सकता। उसको झुलसा दे, जला दे, सुखा दे पूरा जोर लगा ले पर कमल खिल नहीं सकता।
इसलिए जो कमल गुरु की सरोवर में थे वो खिले बैठे हैं। श्रीठाकुरजी की कृपा कि एक किरण उनके जीवन में आनन्द के मेघों की वर्षा कर रहे हैं।
और अगर कमल खिला होता है तो भंवरे भी घूमने लग जाते हैं। जिस क्षण तुम्हारा हृदय आनन्द से खिला होता है तो संत भी आपस में मंडराने लग जाते हैं। उनकी कृपा उनकी अनुभूतता सहज प्राप्त होती है। बंद कमल पर कोई भंवरा नहीं आता। इसलिए
आनन्द ही आनन्द बरस रहा, बलिहारी ऐसे सद्गुरु की…
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
कथं ठाकुरजी ? सूर्य इव भवन्ति। कथं भक्तः ? भक्तः पद्मवत् । ठाकुरजी सूर्य इव, भक्ताः कमल इव गुरुदेवः सरसः।
यदा तत् कमलं सरसि तिष्ठति तदा प्रथमा रश्मिः तं पुष्पं करोति तथा च यदि त्वं तत् सरोवरात् बहिः निष्कासयसि तर्हि सूर्यः तत् पद्मं प्रथमद्वादशघण्टां यावत् क्षतिं कर्तुं शक्नोति, तत् दहितुं शक्नोति, परन्तु तत् पोषयितुं न शक्नोति . कियत् अपि प्रयत्नः करोमि चेदपि अहं तं पोषयितुं न शक्नोमि। तप्तं दह्य शोषय सर्वशक्तिं प्रयोजयतु पद्मं तु न पुष्पितुं शक्नोति।
अत एव ये कमलानि गुरुसरोदे आसन् ते प्रफुल्लिताः सन्ति। श्री ठाकुरजी अनुग्रहस्य एकः किरणः तस्य जीवने आनन्दस्य मेघान् वर्षयति।
यदि च पद्मं प्रफुल्लितं तदा भृङ्गाः अपि भ्रमितुं आरभन्ते। यस्मिन् क्षणे भवतः हृदयं आनन्देन प्रफुल्लितं भवति, तस्मिन् क्षणे सन्तः अपि परस्परं भ्रमितुं आरभन्ते । तस्य अनुग्रहस्य अनुभवः अनुभवः च सुलभः अस्ति। न भृङ्गः निमीलितपद्मं प्रति आगच्छति। अतः
केवलं आनन्दस्य वर्षा भवति, एतादृशस्य सद्गुरुस्य धन्यवादेन…
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥