श्री राधारमणो विजयते
जब संकल्प होगा कि कृष्ण प्रेम पाने की प्यास और बढ़े तब तुम किसी महात्मा के पास आकर बैठोगे, तब भागवत् की, भगवत गीता की और सर्वोपरि चैतन्यचरिताऽमृत की शरणागति को ग्रहण करोगे।
आओगे यहाँ भी इसलिए कि प्यास मिट जाए पर एक बात बता दूँ; कथा में आकर प्यास मिटेगी नहीं, प्यास और भड़क जाएगी।
‘‘दर्द की दवा पाया या दर्द ही बे दवा पाया’’
तेरे पास आया था दर्द की दवाई लेने। पर क्या करूँ? मिलकर हो ये गया दर्द ही बे दवा हो गया।
आया था यहाँ कृष्ण प्राप्ति के लिए औषधि लेने। अब तो तड़प ही और ज्यादा बढ़ गई। प्रेम मिल जाए, कृष्ण भी छूट जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं।
पत्नी छोड़ी, बच्चा छोड़े, दुनिया छोड़ी कौन सा बड़ा काम कर दिया? तुम नहीं भी छोड़ते तो एक दिन काल छुड़ा कर ले जाता।
कृष्ण को भी छोड़ दिया। जाओ तुम किशोरी के साथ मस्त रहो, केवल अपने चरणों का अनुराग हमको देते जाओ।
ये पिपासा है। जब पिपासा हो तब कथा के दरवाजे पर जाओ, तब साधु संगोथ भजन क्रिया। जब संकल्प होगा और कोई विकल्प नहीं होगा तब तुम भजन क्रिया में निष्ठ हो पाओगे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When there is a Sankalpa or determination then your longing or thirst for Krishna Prema will grow and then you will seek the company of a Mahatma and will get the refuge or protective patronage of Shrimad Bhagwat, Bhagwad Gita, and above all Shree Chaitanya Charitamrita.
You will come here to quench your thirst but let me tell you; after coming to the Katha your thirst will not be quenched, instead it will get aroused further.
“Dard ki dava paaya ya dard hee bey dava paaya”.
I had come to you to get a medicine to relieve my pain, but what to do? After meeting you the pain has become incurable.
I had come thinking that I will get a medicine to attain Shree Krishna but now my longing for Him has grown manifold. If you get Prema and say by chance you lose Krishna, don’t worry!
You have left your wife, children, left the world, so what? It’s no big deal. If you wouldn’t have left them one day Kaal would have snatched them away.
I have even left Krishna alone so that He can be happy with Shree Kishoriju, but just do one favor, bless me with the Anurag for your Divine Lotus Feet!
This is Pipasa. When you have it then go and knock the door of Katha, then ‘Sadhu sangotha Bhajan kriya’. Then Sankalpa will arise and there will be no Vikalpa, only then will you be firm in Bhajan!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा त्वं संकल्पं करिष्यसि यत् कृष्णस्य प्रेम्णः तृष्णा अधिकं वर्धते, तदा त्वं आगत्य कस्यचित् महात्मस्य समीपे उपविशसि, तदा त्वं भागवतस्य, भागवतगीतायाः, सर्वेभ्यः अपि चैतन्यचरितमृतस्य च समर्पणं स्वीकुर्यसि।
त्वं तृष्णां शामयितुं अपि अत्र आगमिष्यसि किन्तु एकं वदामि; कथामागत्य तृष्णा न शाम्यति, तृष्णा अपि तीव्रा भविष्यति।
“दुःखस्य औषधं प्राप्तम् उत वेदनाहीनं औषधं प्राप्तम्?”
अहं वेदना औषधं प्राप्तुं भवतः समीपम् आगतः। किन्तु मया किं कर्तव्यम् ? मिलित्वा एषा वेदना औषधहीना अभवत्।
कृष्णप्राप्त्यर्थं औषधं प्राप्तुं अत्र आगतवान्। अधुना आकांक्षा अधिका अपि वर्धिता अस्ति। यदि प्रेम लभ्यते तर्हि कृष्णोऽपि पृष्ठतः त्यक्तः चेत् न महती कार्यम्।
पत्नीं त्यक्त्वा, बालकं त्यक्त्वा, जगत् त्यक्त्वा किं महत् कार्यं त्वया कृतम्? यदि त्वं न गमिष्यसि चेदपि एकदा मृत्युः त्वां हरति स्म ।
कृष्णः अपि अवशिष्टः आसीत् । गच्छ, किशोरी सह विनोदं कुरु, केवलं पादस्नेहं अस्मान् ददाति एव।
एषा तृष्णा। यदा तृष्णा भवति तदा कथा द्वारं गच्छ, ततः साधुसंगोठ भजन क्रिया। यदा संकल्पः भवति विकल्पः नास्ति तदा भवन्तः भजनप्रक्रियायां एकाग्रतां प्राप्तुं शक्नुवन्ति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक जी महाराज ॥