श्री राधारमणो विजयते
हमारा सबका शरीर पंचमहाभूतों से बना है। पृथ्वी, वायु, आकाश, जल, रज है। पंच तत्व यह अधम शरीरा।। गोस्वामी जी कहते हैं।। चाहे कोई भी व्यक्ति हो। पशु हो, मानव हो, धार्मिक हो, अधार्मिक हो हर व्यक्ति के शरीर इन पंच तत्वों से बना है।
हमें जीवन में प्रयास क्या करना चाहिए हम सबके शरीर में पंचतत्व तो हैं पर हमें ये विचारना चाहिए क्या उन पंच तत्वों का गुण है ?
1- पृथ्वी तो है पर क्या पृथ्वी का गुण है आपके पास ? पृथ्वी में सहिष्णुता का गुण है। गड्ढे खोदने के बाद भी ये मीठा फल दे सकती है पहला प्रणाम शास्त्र ने पृथ्वी को हि कहा है। पृथ्वी से अगर सीखा जाय तो सहिष्णुता को सीखा जाय।
2- वायु का गुण भी होना चाहिए वायु सदैव चलती रहती है आप भी अटक नहीं जाना चलते रहना। गँँध से निवृत्त होती है सब जगह जाती है सुलभता है वायु में। महापुरुष चलता रहता है पानी बहता भला साधु चलता भला। जब पानी अटक जाता है तो उसमें दुर्गंध आ जाती है जब कोई साधु अटक जाता है तब उसके चरित्र से दुर्गंध आने लगती है चलते रहिए।।
3- आकाश का गुण होना चाहिए आकाश जैसी विशालता हमारे पास है कि नही। उसमें छोटे तारे भी है बड़े ग्रह भी है सूर्य भी है चन्दमा भी है ये आकाश सबको समाहित कर लेता है आपका हृदय भी आकाश की तरह विशाल होना चाहिए। वो छोटा न हो संकीर्ण न हो। इतना विराट हो कि उसमें गोविन्द समा जाय।
4- जल का गुण भी होना चाहिए जल निर्मल होता है। जल सरल होता है तरल होता है वो नीचे की तरफ भागता है कहीं रख दो ढलान की तरफ जाता है। as it is. हम जैसे हैं वैसे जिए। कम से कम भगवान के सामने तो ऐसे जाए जैसे हैं।
5- अग्नि का ये गुण है हम ऊर्जा से भरे हों। ऊर्ध्वगमनता से भरे हों। उच्च विचार से भरे हों। सब जगह छिपा हुआ भगवान हमको दिख जाय। जैसे आग मोमबत्ती पर भी ऊपर उठ जाती ऐसे ही सामान्य से सामान्य स्थिति पर हम गोविन्द का विचार कर सकते हैं।
जिसमें पाँच तत्व है वो पुरुष है और जिसमें पाँच तत्वों के गुण हैं वो महापुरुष हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The human body is made of the five principal elements. Prithvi, Vaayu, Akash, Jal and Rujja. Goswamiji says, ‘Panch tattva yaha adham shareera’|| Anyone for that matter! Whether animal or human, Dharmic or Adharmic, everybody is made of these five elements.
Though our bodies are made of these five elements, we need to understand what are the properties of these five Gunas?
- Prithvi is there but do we posses it’s Gunas? The property of Prithvi is tolerance. Inspite of digging a pit, the earth gives sweet fruits in return, that’s why the scriptures do the first Pranam to mother earth. We need to learn tolerance from Prithvi!
- The property of Vayu is to flow continuously, therefore don’t get stuck, please keep on walking or moving ahead. It carries the fragrance with it and goes everywhere very easily. Great men are always on the move, ‘Paani bahta bhala, Sadhu chalta bhala ‘|| When the water is stagnant, it stinks, if the Sadhu stops for any reason then unfortunately his character also begins to stink!
- The quality of Akash is its vastness or magnificence, do we have this quality in us? It encompasses the tiniest of stars, large planets, the Sun the Moon, it accomodates every body! One should be large hearted like the sky and accept every one! Please don’t be small hearted or narrow minded! Make it so big that Govind can also be accomodated.
- The quality of Jal or water is to be ‘Nirmal’ or Vestal or unsullied. Water is very easy going, fluid, it flows downwards. It assumes the shape it is contained, as it is! Atleast, let us be as we are in front of God! Unassuming!
- Agni or fire teaches us to be full of energy. We should learn to rise up in life! We should harbour noble thoughts so that we can see the Divine everywhere and in everything. Like, when we light a candle, the flame rises up in the same way in the most ordinary or mundane situations, we can think and remember Govind!
The one who has the five elements is human and the one who posses these qualities is a ‘Mahapurusha’ or a great personality!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
अस्माकं शरीरं पञ्चधातुभिः निर्मितम् अस्ति। तत्र पृथिवी वायुः आकाशः जलं वर्षा च । पञ्च तत्त्वानि एतत् जघन्यशरीरम्। गोस्वामी जी कहते। व्यक्तिः कोऽपि भवेत्। पशुः, मानवः, धार्मिकः, अधर्मः वा, प्रत्येकस्य मनुष्यस्य शरीरं एतैः पञ्चभिः तत्त्वैः निर्मितम् अस्ति ।
जीवने के के प्रयत्नाः करणीयाः? अस्माकं सर्वेषां शरीरे पञ्च तत्त्वानि सन्ति, परन्तु तेषां पञ्चानां गुणाः के के इति चिन्तनीयम् ।
1- पृथिवी अस्ति किन्तु भवतः पृथिव्याः गुणाः सन्ति वा ? पृथिव्यां सहिष्णुतायाः गुणः अस्ति । गर्तं खनित्वा अपि मधुरं फलं दातुं शक्नोति । प्रथमं नमस्कारं शास्त्रेण पृथिव्यां दीयते। यदि पृथिव्याः शिक्षितव्यं तर्हि सहिष्णुतां शिक्षितव्यम्।
2- वायुस्य गुणवत्ता अपि भवेत् यत् वायुः सर्वदा चलति एव, त्वमपि न अटतु, चलति। गन्धं हरति सर्वत्र गच्छति वायुतले सुलभतया प्राप्यते। महापुरुषः चरति, जलं प्रवहति, साधुः चचरति। यदा जलं अटति तदा दुर्गन्धं प्रारभते । यदा कश्चन साधुः अटति तदा तस्य चरित्रं दुर्गन्धं प्रारभते । गच्छतु।
3- आकाशस्य गुणः तत्रैव भवेत् अस्माकं आकाशवत् विशालता अस्ति वा न वा। तत्र लघुतारकाः सन्ति, बृहत् ग्रहाः सन्ति, तत्र सूर्यः, अस्ति चन्द्रः, एतत् आकाशं सर्वान् व्याप्नोति, भवतः हृदयम् अपि आकाशवत् विशालं भवेत्। न लघु वा संकीर्णं वा भवेत्। एतावत् विशालं भवेत् यत् गोविन्दः तस्य अन्तः उपयुक्तः भवेत्।
4- जलस्य अपि गुणः भवेत्, जलं शुद्धम् अस्ति। जलं सरलं, द्रवम्, अधः धावति, सानुं प्रति गच्छति च। यथावत् । यथा वयं स्मः तथा जीवन्तु। न्यूनातिन्यूनं वयं यथा स्मः तथा ईश्वरस्य पुरतः गन्तव्यम्।
5- अग्निस्य एषः गुणः अस्ति यत् वयं ऊर्जापूर्णाः स्मः। ऊर्ध्वगतिपूर्णता पूर्णा भवतु। उच्चविचारैः परिपूर्णः भवतु। सर्वत्र निगूढं देवं पश्यामः। यथा अग्निः दीपकस्य उपरि उत्तिष्ठति, तथैव वयं गोविन्दस्य विषये अत्यन्तं साधारणे परिस्थितौ चिन्तयितुं शक्नुमः।
पञ्चधातुः पुरुषः पञ्चधातुगुणयुक्तः महापुरुषः ।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।।