श्री राधारमणो विजयते
दुनिया में जब हम किसी से मिलते हैं तो कहते हैं- ये प्रथम मिलन है ये द्वितीय मिलन है या तृतीय मिलन है हम आपसे पाँचवी बार मिल रहे हैं फिर कभी-कभी अरे हम तो रोज ही मिलते हैं पर एक बात कहूँ
कृष्ण के साथ रोज प्रथम मिलन ही होता है। ये प्रेम की परिधि है। क्योंकि वो रोज भी नया ही होता है। आप रोज राधारमण जी का चित्र देखते हो, खोलकर देखना ऐसे ही लगेगा ये तो कल देखा ही नहीं था।
नवम् नवम् अभिप्सिंत।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
In the day to day life, when people meet someone they say, I am meeting so and so for the first time or the second time or the third or the fifth time or go on to say that we meet practically every day. However, can I say something;
We meet Lord Krishna every day for the first time. Because, He is new every moment! This is the uniqueness of Divine Love or Prema, because it is never stale. In other words, it is new all the time! You see Shree Radha Ramanji’s picture every day, try it out once and see for yourself, you will feel that you are seeing this particular Bhava for the first time!
‘Navam Navam abhipsittam’||
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
अस्मिन् जगति यदा वयं कस्यचित् साक्षात्कारं कुर्मः तदा वयं वदामः – एषः अस्माकं प्रथमः समागमः, एषः अस्माकं द्वितीयः समागमः अथवा एषः अस्माकं तृतीयः समागमः, वयं भवन्तं पञ्चमवारं मिलित्वा स्मः, ततः कदाचित् भवन्तं प्रतिदिनं मिलित्वा, परन्तु अस्तु एकं वदतु।
कृष्णेन सह प्रथमः समागमः प्रतिदिनं भवति। इति प्रेमवृत्तम् । यतः प्रतिदिनं नूतनं भवति। भवन्तः प्रतिदिनं राधारमणजी इत्यस्य चित्रं पश्यन्ति, यदा भवन्तः तत् उद्घाटयन्ति तदा भवन्तः श्वः न दृष्टवन्तः इव अनुभूयन्ते।
नवम नवमी आकांक्षा।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।