वृन्दावन पावनों को भी पावन करने वाला है। पुराने संत सुनाते कि जब कुंभ के बाद प्रयाग भी सबके पापों को धो धोके थक जाते हैं तो प्रयाग का स्वरूप श्याम वर्ण का हो जाता था काले घोड़े पर बैठकर आते और श्रीवृंदावन की धूलि पर लोटपोट होते तब वह भी स्वर्णमय शरीर को प्राप्त कर के यहाँ से जाते।
सकल पावन पावनेस्मिन्
पावनों को पावन करने वाला श्रीवृन्दावन।।
वृंदावन की भक्ति का स्वरूप स्वतंत्र है।
सांप्रदायिकता सब जगह होगी पर श्रीवृंदावन का अद्वैतवादी अलग ही भाव का है। सब जगह के रामानुजी अलग होंगे पर वृंदावन का रामानुजी भी माधुर्यभाव में कुछ ना कुछ अंश प्राप्त किया है।
अरे यहाँ किसी भी संप्रदाय का हो पर अगर वृंदावन का नशा चढ़ गया, उसकी रज घुस गई उसकी नाक में, उसके रसिकों का संग मिल गया तो विशुद्ध प्रेम लक्षणा भक्ति उसके हृदय में स्वयं प्रकट हो जाती है।
यह वृंदावन की रज तो भगवत प्राप्ति का चूर्ण है यह वह चूर्ण है जो विकारों को निवृत्त करता है और भक्ति को पुष्ट करता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।