कोई श्रृंगार क्यों करता है? अपने लिए नहीं करता, दूसरे के लिए ही सजता है, दूसरे के लिए ही शृंगार करता है। अपने आंखों में काजल लगाया तो आपको तो दिखा ही नहीं। कहने का अर्थ यह है- महात्मा प्रस्तुति से निवृत्त हो जाता है। कथा प्रस्तुति नहीं है, कथा स्तुति है। कीर्तन प्रस्तुति नहीं है कीर्तन स्तुति है।
राधारमणजी में जो भी आए प्रस्तुति करने एक भी ना आए, जो भी आए गोपाल की वह स्तुति करने आए। वह स्तुति सारंगी से पैदा हो सकती है, सितार से पैदा हो सकती है, तबला से पैदा हो सकती है, वंशी से पैदा हो सकती है, श्लोंकों से पैदा हो सकती है, पद पदावली से पैदा हो सकती है।
कई बार कुछ न करने आने वाला व्यक्ति भी प्रस्तुति कर सकता है क्योंकि वह यह दिखा रहा है कि मैं दर्शन करने आया हूंँ। तुम्हारे दर्शन करने की विधा में तुमने गोपाल के अलावा किसी और को अगर केंद्र में रख दिया तो तुम्हारा दर्शन करना भी अन्य के प्रति तुम्हारी प्रस्तुति हो जाएगी।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Why does one do make-up? One doesn’t do it for himself/herself but it is to impress the other person with the dressing up or make-up! If you apply kohl, you can’t see it but it can be seen by others. What I mean to say that a Mahatma does not need to impress anyone, therefore he is free from any sort of an external make-up. Katha is not a presentation or ‘Prastuti’, instead it a Stuti or a prayer!
Whosoever comes to Shree Radharamanji’ please don’t come for any sort of an exhibition or show-off! You come here to do the Stuti of Gopal. The Stuti can be done by playing the ‘Sarangi’ or the Sitar or playing the ‘Tabla’ or the flute or by reciting a few Shlokas or by singing any ‘Padawali’.
Many a times a person who isn’t doing anything but he has come just to show others that he has come for the Darshan. If you include anything or anybody else in the manner of your doing the Darshan then it is surely an act of show-off!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
किमर्थं कोऽपि मेकअपं करोति ? आत्मनः कृते न करोति, केवलं परेषां कृते एव अलङ्करोति, केवलं परेषां कृते एव अलङ्करोति। यदि त्वं नेत्रेषु काजलं स्थापयसि तर्हि त्वं तत् सर्वथा न पश्यसि । कथनस्य अर्थः एषः – महात्मा प्रस्तुतितः निवृत्तः भवति। कथा न प्रस्तुतिः, कथा स्तुतिः। कीर्तनं न प्रस्तुतिः कीर्तनं स्तुतिः।
यो राधारमञ्जी आगता, एको भी प्रस्तुत न आगता, जो गोपाल स्तुति करने आगता। सा स्तुतिः सारङ्गीतः जायते, सीतारात्, जातुम्, तबलाद्, वंशीतः, श्लोकाभ्यः, पादपदावलीतः जायते, भवितुम् अर्हति।
कदाचित् किमपि कर्तुं न आगतः सः अपि कर्तुं शक्नोति यतः सः मम दर्शनार्थम् आगतः इति दर्शयति । यदि भवन्तः स्वस्य दर्शनविधाने गोपालात् परं कञ्चित् केन्द्रे स्थापयन्ति तर्हि भवतः दर्शनं परं प्रति भवतः प्रस्तुतिः अपि भविष्यति।
परमाराध्य: पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।