श्री राधारमणो विजयते
जीवन में चलते हुए अध्यात्म के रास्ते में संत की नजदीकी बहुत ज्यादा आवश्यक होती है। चलते हुए तुम्हारे पास अगर जल रखने का स्थान है एक बोतल है तो फिर तुम परवाह नहीं करते, मस्त चलते जाते हो।
तब जाने की गति, ठहरने का पड़ाव और पहुंचने का लक्ष्य तुम्हारा स्वतंत्र निर्णय होता है। क्योंकि जरुरत पड़ने पर जल भी तुम्हारे पास है, अन्न भी तुम्हारे पास है। तुम जहाँ चाहे वहीं पर ठहर सकते हो, जहाँ तक चलना चाहो वहाँ तक जा सकते हो। ऐसे ही
अध्यात्म के रास्ते पर भी चलते हुए एक संत की संगति और आशीर्वाद की आवश्यकता तुम्हारे साथ कदम कदम पर रहने चाहिए। चलते हुए उसका अनुग्रह हर कदम पर तुमको प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि अगर गोविंद की प्राप्ति में अगर तुम्हारे दिल से की गई साधना में अगर कोई रत्ती भर कमी आ गई तो तुम चिंता मत करना, अगर संत का सहारा हुआ तो एक न एक दिन वो अपनी साधना की डंडी तुमको पकड़ा करके इस भवसागर से पार करके, गोविंद के चरणों को प्रदान कर देगा।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
Walking on the spiritual path in life, the closeness or proximity of a saint is very much needed. While you are walking and if you have water with you, you don’t bother and go on walking freely.
Your speed, where to halt on the way and the ultimate destination is your independent choice. Because, you have water with you to quench your thirst and you know exactly where you will get food. You can stop wherever and whenever you want, walking as much you can at a stretch. In the same way;
Walking on the path of spirituality, the company of a saint and his/her blessings are needed at every step. As you walk, you should experience the divine grace at every stage. Because, when your aim is to attain Govind and you have put your heart and soul totally into it, for any reason if there is any shortcoming then you don’t need to worry because since you have the blessings of a saint with you then walking along he shall give you the support of his sadhana to cross the ocean of this world and reach you to the Divine Lotus Feet of Shree Govind!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
जीवने आध्यात्मिकतामार्गे गच्छन् सन्तस्य सामीप्यम् अतीव महत्त्वपूर्णम् अस्ति। यदि भवतः गमनसमये जलं स्थापयितुं स्थानं, पुटं च अस्ति तर्हि भवतः चिन्ता नास्ति, भवतः सुखेन गमनम् अस्ति।
तदा प्रस्थानवेगः, विरामबिन्दुः, लक्ष्यं च प्राप्तुं भवतः स्वतन्त्राः निर्णयाः सन्ति । यतः आवश्यकता चेत् भवतः अपि जलं भोजनं च अस्ति। यत्र इच्छसि तत्र स्थातुं शक्नोषि, यावत् इच्छसि तत्र गन्तुं शक्नोषि। एवमेव
आध्यात्मिकतामार्गे गच्छन् अपि साधुस्य सङ्गतिः आशीर्वादः च भवतः प्रत्येकं पदे एव तिष्ठेत् । भवन्तः गच्छन् प्रत्येकं पदे तस्य प्रसादं प्राप्नुयुः।यतो हि यदि गोविन्दप्राप्त्यर्थं हृदयेन कृतायां भक्तिषु किञ्चित् अपि अभावः अस्ति, तर्हि चिन्ता न कुर्वन्तु, यदि भवतः साधुस्य आश्रयः अस्ति, तर्हि एकस्मिन् दिने वा अन्ये त्वां भक्तिदण्डेन नीत्वा लौकिकसागरं लङ्घयितुं साहाय्यं करिष्यति। , गोविन्दस्य चरणयोः प्रदास्यति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥