श्री राधारमणो विजयते||
अनुराग की प्रतीति ही वैराग्य रूप में परिणत होती है। यह दुनिया रंगमंच की तरह एक नाटक चल रहा है इसलिए कभी-कभी अपने जीवन में साधन सिद्ध विरक्त महापुरुषों को प्रणाम करके आइये तो आपके जीवन में इस दुनिया से कमल की भांति ऊपर उठने की प्रतिभा सिखा देंगे।
हमारे श्रीषड् गोस्वामी पाद कैसे सब छोड़कर श्रीब्रज में रहते हैं ।
बैरागी होने का मतलब गरीब होना नहीं है। गरीब होना अलग बात है बैरागी होना अलग बात है। हम समान्यतः गरीबी और बैरागी में एक समान समझ लेते हैं
कई बार हम किसी गरीब को देखते हैं तो हमारे मन में दया जागृत होती है और उसी दया को हम श्रद्धा समझ लेते हैं। दोनों में फर्क है। गरीबी और बैरागी इसमें फर्क होता है।
हम जिन षड्गोस्वामी पाद को वैराग्य की परम मूर्ति कहते हैं उन्हीं गोस्वामियों के द्वारा वृंदावन के उस समय भव्य मंदिर बनाए गए। उन्हीं ने गोविंददेव जी बनाए जिसका दिया जलता था तो आगरा तक रोशनी जाती थी।
परम वैराग्य की मूर्ति है श्रीजीव गोस्वामी पाद। उन्हीं के द्वारा श्रीराधाकुंड धाम के घाटों की स्थापना की गई। वृंदावन के भव्य दिवाल जिनका कंपैरिजन आज का आर्किटेक्ट भी नहीं कर सकता वह बनाए गए हैं। जरा दिमाग से समझिए।
पैदल चलना, गाड़ी में ना बैठना यह नियम साधु के लिए बहुत अच्छा है। जरूर करना चाहिए। पर इन सब व्यवस्थाओं से किसी के वैराग्य की तुलना मत कीजिए।
समझना कठिन होता है गदाधरपाद तक विद्यानिधि को समझ नहीं पाए। हमारी तुम्हारी क्या औकात
पर गरीबी अलग चीज है, दरिद्रता अलग चीज है, वैराग्य अलग चीज है। साधनों के होते हुए भी अगर उसके प्रभाव से बच गए तो वह परम बैरागी है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The realisation of ‘Anurag’ or devotional attachment gives rise to Vairagya or detachment. This entire world is nothing but a stage on which this play is being enacted so sometimes when fortunately you are blessed with the darshsan of a ‘Sadhan Siddha Virakta Mahatma’, then you learn how to rise above like a Lotus in this ocean of the world.
Our ‘Shadd-Goswamipada’, giving up everything, resided in Braja!
‘Bairagi’ doesn’t mean being poor! Being poor is a different thing whereas to be a renunciate or a ‘Bairagi’ is entirely different. Generally, we tend to consider them to be one and the same thing.
At times, when we see a poor person, we are overwhelmed with kindness and we mistake it with faith or ‘Shraddha’! Both are different! Renunciation and poverty are not the same!
The ‘Shadd-Goswamipada’, who are the embodiment of total Renunciation, these very Goswamis during their time made great temples in Shree Dham Vrindavan. They made Shree Govindadevji’s temple and it is said that the illumination of its lamp would even go upto Agra!
Shree Jeeva Goswamipada, an embodiment of complete Vairagya! He was instrumental in the construction of the Ghats of Shree Radha Kunda Dham!The glorious wall of Shree Dham Vrindavan, which is beyond compare and cannot be imagined by the architects of today! Just try to understand!
To walk and not to use any vehicle for transportation is very good for the Sadhu. It is commendable and must be done but please don’t measure the renunciation with these barometers.
It is hard to believe, even Shri Gadadharpada couldn’t understand Shri Vidyanidhi! What to talk about ordinary people like us!
But, poverty or indigence are different from Vairagya. In spite of having everything for that matter, if one remains completely unaffected or is detached then he is a Param Vairagi!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
स्नेहभावः एव अरागं परिणमति। इदं जगत् नाट्यगृहमिव अस्ति यत्र नाटकं प्रचलति अतः कदाचित् भवतः जीवने आगत्य स्वसाधनं सिद्धं विरक्तं च महापुरुषं नमस्कृत्य तदा ते भवन्तं पद्मवत् अस्मात् जगतः उपरि उत्तिष्ठितुं प्रतिभां शिक्षयिष्यन्ति .
अस्माकं श्रीशद गोस्वामी पादः सर्वं त्यक्त्वा श्रीब्रजं कथं निवसति?
एकान्तवासी इति न दरिद्रत्वम् । दरिद्रत्वं एकं वस्तु, परदेशीयत्वं भिन्नं वस्तु। वयं सामान्यतया दारिद्र्यं एकान्ततां च परस्परं समं कुर्मः ।
बहुवारं यदा वयं कञ्चन दरिद्रं पश्यामः तदा अस्माकं मनसि करुणा जागरति, तां दयां च वयं श्रद्धा इति मन्यामहे। तयोः भेदः अस्ति । दारिद्र्यस्य एकान्तत्वस्य च भेदः अस्ति ।
वैराग्यस्य परममूर्तिः इति वयं वदामः शद्गोस्वामी पदः एव तस्मिन् काले वृन्दावनस्य भव्यमन्दिराणां निर्माणं कृतवान् । स एव गोविन्ददेव जी सृष्टवान् यस्य दीपः प्रज्वलितः, ज्योतिः आगराम् अगच्छत्।
श्रीजीव गोस्वामी पदः परमत्यागस्य मूर्तरूपः अस्ति। श्री राधाकुन्द धामस्य घाटाः तेन स्थापिताः। वृन्दावनस्य भव्यभित्तिः निर्मिताः, येषां तुलना अद्यतनवास्तुविदः अपि कर्तुं न शक्नुवन्ति । केवलं मनसा अवगच्छन्तु।
पदातिगमनस्य, याने न उपविष्टस्य च एषः नियमः साधुस्य कृते अतीव उत्तमः अस्ति । अवश्यं कर्तव्यम्। परन्तु एतैः सर्वैः व्यवस्थाभिः सह कस्यचित् त्यागस्य तुलनां मा कुरुत।
दुर्बोधं, गदाधरपदमपि विद्यानिधिं अवगन्तुं न शक्तवान्। भवद्भिः सह अस्माकं का स्थितिः
परन्तु दारिद्र्यं भिन्नं वस्तु, अभावः भिन्नं, त्यागं भिन्नं वस्तु। यदि संसाधनं कृत्वा अपि तस्य प्रभावं पलायते तर्हि सः एव परमत्यागः ।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥