सेवा का अर्थ है हम जो भी करें वो अपने अनुसार नहीं, श्रीठाकुरजी के अनुसार करें। पूर्ण शरणागत होकर करें। तब अगर आप भोजन भी करोगे तो वो भी सेवा का ही अंग होगा क्योंकि तब आप उतना और वैसे ही खाओगे जिससे उसको भोग लगाने विघ्न न आए।
सेवा बहुत सूक्ष्म स्वरूप है।
श्रीकृष्ण गोकुल में प्रकट हुए। गो का मतलब होता है इंद्रियाँ। अगर आप गोकुल में श्रीकृष्ण को जन्म देना चाहते हो तो अपनी प्रत्येक इन्द्रियों में श्रीकृष्ण को जन्म दो।
हरि-हरि नाम उचारिए, हरि जश सुनिए कान।
हरि को मस्तक नाइए, हरि हैं सकल गुण के निधान।।
हाथन हरि के कर्म कर, पायन परिक्रमा दीजै।
नयन निरख श्रीजगन्नाथ आत्मसमर्पण कीजै॥
ये भावना ही जीवन में सेवा को सार्थक करती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
The actual meaning of ‘Sewa’ is that whatever we do, we do it according to and for ‘Shree Thakurji’, not for ourselves. Our actions should be performed with the feeling of total unconditional surrender. Then, when you are eating, it will also become a part of ‘Sewa’ because whatever you eat, you will make sure that it does not become an impediment in your service.
‘Sewa’ needs to be understood very minutely!
Shree Krishna incarnated in ‘Gokula’. ‘Go’ means the sense organs. If you want Shree Krishna to be born in your ‘Gokula’ then make sure that His Lordship incarnates in each and very organ of your physical as well as the subtle body.
‘Hari-Naam uchaariye, Hari Jasha suniye kaan |
Hari ko mastak navaaiye, Hari hain sakal guna ke nidhan||’
‘Haathan Hari ke karma kara, paayan parikamma deejay|
Nayan nirakh Shree Jagannath, aatmasamarpann keejay ||’
This feeling or attitude will make your service or ‘Sewa’ meaningful!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (०६-०७-२०२३)
सेवा अर्थात् यत् किमपि कुर्मः तत् अस्माभिः स्वस्य अनुसारं न, अपितु श्री ठाकुरजी इत्यस्य अनुसारं कर्तव्यम्। पूर्णसमर्पणेन कुरु। अथ अन्नं खादन् अपि तत् सेवायाः भागः अपि भविष्यति यतः तदा भवन्तः तादृशं भोजनं करिष्यन्ति यत् तस्य अर्पणे बाधकः नास्ति।
सेवा अतीव सूक्ष्मरूपम् अस्ति।
श्री कृष्णः गोकुले प्रादुर्भूतः। गो इत्यर्थः इन्द्रियाणि । यदि आप गोकुल में श्री कृष्ण को जन्म देना चाहते हैं, तो अपने प्रत्येक इन्द्रियों में श्री कृष्ण को जन्म दे |
हरि-हरि नाम जप, हरि महिमा शृणु |
हरिं मुण्डय शिरः हरिः स्थूलगुणनिवासः |
हस्तेन हरेः कर्म कुरु, प्रदक्षिणं मे देहि |
नयन निरख श्री जगन्नाथ ने आत्मसमर्पण।
एषा भावना केवलं सेवां जीवने सार्थकं करोति।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।