श्रीमनमहाप्रभु जी कोई भी ब्रज जा रहा हो या वृन्दावन की लीलास्थली पर जा रहा हो तो श्रीमनमहाप्रभु जी सदा उसको एक निर्देश देते कि हमारे लिए वहाँ से थोड़ी रज ले आना।
मैं सबसे निवेदन करूँ कि आप सबके हृदय में वृंदावन के रज की मांग बढ़नी चाहिए। रज की मांग और महत्त्व बढ़ने चाहिए।
हमारे हृदय में सुविधा की मांग बढ़ गई है तो जैसे डिमांड होती है इकोनॉमिक्स कहती है वैसे ही सप्लाई होती है। हम सुविधाओं की मांग करने लगे तो ब्रज का खूब सुविधामय साधन हो गया है। आज से 20-30 साल पहले जाते, तांगों में पांच 5 किलोमीटर जाना पड़ता था। वह भी जमाना था। तो
क्योंकि सुविधाएं चाहिए थी अब तो ऐसे संसाधन की बड़े-बड़े शहरों के होटल भी फेल हो जाए। ठीक है मैं उस पर क्या टिप्पणी करूँ? पर
मैं एक ही निवेदन करता हूँ,
आप वृंदावन की रज की मांग करिए। रज को एकत्रित करिए। ज्यादा से ज्यादा लोग जाएंगे, रज की मांग करेंगे, रज की डिमांड भरेंगे तो वहाँ पर बनाने वाले संभालने वाले लोगों के मन में यह बात तो जगेगी। वहाँ के रज का महत्व बढ़ेगा।
श्रीमनमहाप्रभु जी सदा श्रीव्रजरज का परम समस्वादन करते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Whenever anyone would go To Shree Vrindavan Dham or Braj, ‘Shreemann Mahaprabhuji’ would say that please get me a little ‘Rujj’ or the sacred dust from there.
I would like to submit here that in our hearts the longing or the demand for this holy dust should increase day by day! The desire and the importance of this sacred dust should increase!
Today, most of us want more and more comforts or facilities, like in economics, the supply increases with the demand! Since, people ask for more facilities, today in Braj you will find all the modern amenities there. Twenty-thirty years ago, one had to travel at least five to seven kilometres by a Tonga. Those were the days!
Because, the pilgrims became more demanding, today the facilities created in Braj will put many a big town to shame! Fine, why should I comment on it? But,
I would like to make a request;
Please ask for the ‘Rujj’ or the sacred dust of Shree Vrindavan. Please collect it, as much as you can. More and more people should go and ask for the ‘Rujj’, thus its demand will go up and automatically the people there will start collecting and preserving it! The importance of ‘Rujj’ will be understood correctly.
‘Shreemann Maha Prabhuji’ always worshipped and would be emotionally immersed in its divinity!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
श्रीमन्महाप्रभु जी , यः ब्रजं गच्छति वा वृन्दावनस्य लीलास्थलीं गच्छति, तदा श्रीमन् महाप्रभु जी तस्मै सदैव निर्देशं ददाति स्म यत् अस्माकं कृते ततः किञ्चित् राजम् आनयतु।
सर्वेभ्यः प्रार्थयामि यत् भवतः सर्वेषां हृदयेषु वृन्दावनस्य शासनस्य आग्रहः वर्धते। राजस्य माङ्गं महत्त्वं च वर्धयेत्।
अस्माकं हृदये सुविधायाः आग्रहः वर्धितः अस्ति, अतः यथा आग्रहः अस्ति, अर्थशास्त्रं वदति, तथैव आपूर्तिः अपि वर्धिता अस्ति। यदा वयं सुविधानां आग्रहं कर्तुं आरब्धाः तदा ब्रजः अतीव सुविधाजनकः सुविधा अभवत् । २०-३० वर्षाणि पूर्वं टोङ्गा-यानेन पञ्च किलोमीटर्-पर्यन्तं गन्तव्यम् आसीत् । तदपि युगम् आसीत् । अतः
यतः सुविधानां आवश्यकता आसीत्, अधुना बृहत्नगरानां होटलानि अपि एतादृशसम्पदां कारणात् विफलाः भवन्ति । ठीकम् अहं तस्मिन् विषये किं टिप्पणीं कर्तुं शक्नोमि? किन्तु
मम एकः एव अनुरोधः अस्ति
वृन्दावनस्य शासनं याचसे। रसं सङ्गृह्यताम् । अधिकाधिकाः जनाः गमिष्यन्ति, धनस्य आग्रहं करिष्यन्ति, यदि धनस्य आग्रहः पूर्णः भवति तर्हि एतत् वस्तु तत्र निर्मायन्ते ये जनाः तेषां मनसि अवश्यमेव जागरिष्यति। तत्र राजस्य महत्त्वं वर्धते।
श्रीमन् महाप्रभु जी सदा श्री व्रजराज का परम रस दते हैं।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।