श्री राधारमणो विजयते
जिसके पास बड़ा मन हो असल में वही मणि है। सच बात तो ये है कि जो आवश्यकताओं की सेवा करे। जो दीन का नाथ बन सके लक्ष्मी उसी के घर आ सकती हैं। बड़े पेड़ के नीचे छोटे पेड़ का अपना अस्तित्व होता है उस दृष्टि से मन में ये बात समझ ली कि तुम माँगने बैठो तो भगवान देने आएँगे कि नहीं आएँगे मैं सच बात कहूँ
माँगने बैठो तो ये भरोसा नहीं मिलेगा या नहीं। क्योंकि भगवान हमारे हित का विचार करके हमें देता है हम जो माँगते हैं चाहे वो वस्तु वर्तमान में सुख देने वाली हो पर बाद में अगर कष्ट देने वाली होगी तो गोपाल नहीं देगा। इसलिए वो देने में सावधान है।
हम माँगने बैठेंगे तो भरोसा नहीं गोपाल देने आएँगे कि नहीं पर हम देने बैठेंगे तो पूरा भरोसा है गोपाल लेने जरूर आएगा। देख लो किस रूप में आ जाएँ।
न जाने किस रूप में नारायण मिल जाए।।
अब ये तुम्हारी दृष्टि है कि तुम लेने वाले को भिखारी समझो दरिद्र समझो या दाता समझो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The one who has a big heart, he has the true Mani or Jewel. The truth is that which fulfills the needy! The one who can become the provider of the needy or impoverished, Lakshmi only comes to such an individual! Under a huge tree, even a tiny plant or a blade of grass has its own importance. From this point of view, please understand this clearly that if you sit down and ask, whether the Lord will come and give it you, I can’t say, but to tell you the truth;
When you sit down to ask then you can’t be sure whether you will get or not. Because, the Lord first will see whether what you are asking, is for your ultimate good! What we ask, might be of benefit today but if it is going to be detrimental in the long run then Shree Gopal will never give! That’s why, He is very careful in giving!
When we sit down and ask then we can’t be certain that Shree Gopal will come and give but if we sit down to give, be rest assured that Gopal will certainly come to take! Who knows, in what form He will come? ‘Na jaaney kis roopa mein Narayana mil jaaye’||
Now it is entirely upto you whether you think the taker to be poor or impoverished, or he is the Provider himself!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यस्य हृदयं महत् अस्ति सः वस्तुतः रत्नम् एव। सत्यं तु यत् आवश्यकतानां सेवां करोति। लक्ष्मीः तस्य गृहं आगन्तुं शक्नोति यः दीनेश्वरः भवितुम् अर्हति। लघुवृक्षस्य बृहत्वृक्षस्य अधः स्वकीयं अस्तित्वं भवति । तस्मात् दृष्ट्या अहं मनसि अवगच्छामि यत् यदि भवान् याचयितुम् उपविशति तर्हि ईश्वरः दातुं आगमिष्यति वा न वा? अहं सत्यं वक्ष्यामि।
यदि त्वं पृच्छितुं उपविशसि तर्हि त्वं विश्वासं न प्राप्स्यसि न वा। यतः ईश्वरः अस्मान् यत् याचयामः तत् अस्माकं कल्याणं विचार्य ददाति, यद्यपि वस्तु अस्मान् वर्तमानकाले सुखं ददाति परन्तु यदि पश्चात् दुःखं जनयिष्यति तर्हि गोपालः तत् न दास्यति। अत एव दाने सावधानः भवति।
यदि वयं पृच्छितुं उपविशामः तर्हि गोपालः दातुं आगमिष्यति वा न वा इति वयं निश्चिताः न स्मः, परन्तु यदि वयं दातुं उपविशामः तर्हि अस्माकं पूर्णः विश्वासः अस्ति यत् गोपालः अवश्यमेव ग्रहीतुं आगमिष्यति। पश्य त्वं केन रूपेण आगच्छसि।
नारायणः कस्मिन् रूपेण लभ्यते इति न जानाति।
इदानीं भवतः मतं यत् भवन्तः ग्रहणं याचकं, दरिद्रं वा दाता वा इति मन्यन्ते।
।।परमाराध्य: पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।