
II Shree Radharamanno Vijayatey II
A sign of Vishwas is fearlessness and both fulfill each other, yet they are independent of each other. The absence of daylight is night and vice versa but both day and night have their own identity.
Bharosa or trust and fearlessness, both have their own identities. Total surrender at the Lotus Feet of Sadguru blesses the disciple with both. That is why, ‘Shree Guru Charan Saroja II’ The Charan is said to be very soft and delicate. There is one more word added ‘Rujja’. Shree Guru Charan Saroja Rujja’.
The glory of the ‘Guru Charan Rujja’ is much more than Shree Guru Charan! This very Divine Dust of Shree Guru’s Lotus Feet anoints the disciples forehead as the Tilak. It will not be out of place to mention that the greatness of the Charan Rujja is much more Guru’s Shree Charan.
There is a shloka of Shreemad Bhagwat is, ‘Vina Mahattpadarajjobhishekam’ II
What is there in Shree Dham Vrindavan, it is only the sacred Divine Dust of the Lord, please don’t consider it to be any ordinary dust or mud!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
विश्वास की एक गति है निर्भयता की गति है ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं पर उसके बाद भी स्वतंत्र है। दिन का ना होना रात है रात का ना होना दिन है ये एक दूसरे के पूरक हैं पर दिन का अपना अस्तित्व है और रात का अपना अस्तित्व है।
भरोसा अपना अस्तित्व है और निर्भयता अपना अस्तित्व है। गुरु चरणों में इन दोनों चीज की प्राप्ति होती है। इसलिए श्री गुरु चरण सरोज।। चरण को कमल कहा। उसके आगे भी शब्द जुड़ा रज। श्री गुरु चरण सरोज रज।
गुरु चरणों से भी ज्यादा अगर किसी की महिमा है तो गुरु चरण रज की महिमा है। वो गुरु चरण रज ही तो है जो शिष्य अपने मस्तक पर धारण करता है तिलक के रूप में। या यों भी कहना गलत नहीं होगा चरणों की महिमा नहीं है चरणों की रज की महिमा है।
भागवत जी का श्लोक कहता है बिना महत् पाद रजोऽभिषेका।। श्रीवृन्दावन में क्या है भगवान की रज ही तो है उसे धूली मत समझना उसे माटी मत समझना।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
श्रद्धायाः गतिः अस्ति, अभयस्य गतिः अस्ति, एतौ परस्परं पूरकौ स्तः, परन्तु तदा अपि स्वतन्त्रौ स्तः। दिवाभावः रात्रिः, रात्र्याभावः दिवसः, ते परस्परं पूरयन्ति किन्तु दिवसस्य स्वकीयं अस्तित्वं रात्रौ च स्वकीयं अस्तित्वम् अस्ति।
विश्वासः अस्माकं अस्तित्वं निर्भयं च अस्माकं अस्तित्वम्। एतौ द्वयमपि गुरुचरणयोः प्रतिपद्यते। अत एव श्री गुरु चरण सरोज रज। पादौ पद्म उच्यते। ततः पूर्वं रजशब्दोऽपि योजितः । श्री गुरु चरण सरोज रज।
यदि कस्यचित् गुरुपादादधिक महिमा अस्ति तर्हि गुरुपादस्य महिमा एव। गुरुचरणरजः एव यः शिष्यः तिलकरूपेण ललाटे धारयति। अथवा पादमहिमा नास्ति, पादगुह्यमहिमा इति वा न दोषः स्यात्।
भागवते एक श्लोकं कथयति विना महत् पाद रजोऽभिषेका। श्रीवृन्दावने किम् अस्ति, तत् ईश्वरस्य गुह्यम् अस्ति, तत् रजः इति न मन्यताम्, तत् मृदा इति मा मन्यताम्।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
