श्री राधारमणो विजयते ||
जब भी जीवन में किसी समय श्रद्धा का उदय हो तो फिर एक काम करो- जैसे ही थोड़ी सी चिंगारी आए, थोड़ा सा भाव पिघले, थोड़ी सी ललक पैदा हो तो फिर एक काम करो; नाम के पास बाद में जाना, मंदिर के पास में भी बाद में जाना, कृष्ण के पास भी बाद में जाना
अगर थोड़ी सी भी चिंगारी लगे तो फिर ऐसे के पास जाना जिसका दिल उसके प्यार में जल रहा हो।
श्रद्धा के बाद ततः साधु संगोथ भजन क्रिया।। पहले जब श्रद्धा आती है तो श्रद्धा के साथ किसी संत मिलन का अवसर और आना चाहिए। अगर संत मिलन का अवसर आ गया तो तुम्हारे भजन क्रिया में कोई व्यवधान नहीं हो सकता।
भरत के अंदर थोड़ी सी तड़प की पैदाइश हुई तो वह उठकर के जंगल में चल दिए। इसलिए एक छोटे से हिरण्य ने उनको पकड़ लिया। माया बहुत प्रबल है। वह जंगल में बैठकर फंस गए हम तुम तो बाजारों में बैठे हुए हैं हमारी क्या हालत हो सकती है उसका पता भी नहीं है।
इसलिए “साधु संगोथ भजन क्रिया”
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When ever Shraddha or faith arises in life then please do one thing, the moment a spark comes and you experience your Bhava or emotions melting, you experience a little bit of longing taking shape within you then please do one thing; go to the one who’s heart is burning in Divine Love or Prema.
The divine name or the temple or for that matter, even Shree Krishna can wait!
After Shraddha takes birth within you, ‘Tataha: Sadhu sangotha Bhajan kriya’|| When Shraddha comes then along with it the opportunity of meeting a Saint should also come! If you get this then be rest assured that you won’t have any obstacle in your Bhajan Kriya.
When Shree Bharat experienced yearning, he ran towards the forest and got entangled in the affection towards a deer fawn. The Maya is very strong! Sitting in the forest he was ensnared by it, we all are sitting in the bazaar, who can even imagine the state we all are in?
That is why, ‘Sadhu sangotha Bhajan Kriya’||
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा कदापि जीवने कस्मिन् अपि समये विश्वासः उत्पद्यते, तदा एकं कार्यं कुरुत – यथा एव किञ्चित् स्फुलिङ्गम् आगच्छति, किञ्चित् भावः द्रवति, किञ्चित् आकांक्षा उत्पद्यते, ततः एकं कार्यं कुरुत; पश्चात् नाम गच्छन्तु, पश्चात् मन्दिरं गच्छन्तु, पश्चात् कृष्णं गच्छन्तु
यदि किञ्चित् स्फुलिङ्गम् अपि अस्ति तर्हि यस्य हृदयं प्रेम्णा प्रज्वलितं तस्य समीपं गच्छतु।
भक्ति के बाद साधु संगोथ भजन क्रिया। प्रथमं यदा श्रद्धा आगच्छति तदा श्रद्धया सह अन्यः अपि साधुसमागमस्य अवसरः आगच्छेत्। यदि साधुसमागमस्य अवसरः आगच्छति तर्हि भवतः भजनप्रक्रियायां किमपि बाधकं न भवितुम् अर्हति।
भारतस्य अन्तः किञ्चित् आकांक्षा उत्पन्ना, अतः सः उत्थाय वनम् अगच्छत् । अतः एकः लघु मृगः तान् गृहीतवान्। माया अतीव बलवती अस्ति। ते वने उपविश्य अटन्ति, वयं विपणौ उपविष्टाः स्मः, अस्माकं स्थितिः का भवेत् इति अपि न जानीमः।
अतः “साधु संगोऽथ भजन क्रिया”
परमाराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।