श्री राधारमणो विजयते
हमारे द्वारा जब हमारी अन्तस चित्तवृत्ति को प्रेरणा मिलती है तब जीवन में आध्यात्मिकता का उदय होता है। हर व्यक्ति जन्म लेते हुए आध्यात्मिक है। जीव का वास्तविक स्वरूप सच्चिदानन्द स्वरूप ही है पर किसी न किसी सद्पुरुष से प्रेरित होकर जब उसका अन्तःकरण समबलित होता है तब उसके अन्दर स्वतः आध्यात्म का जागरण होता है।
हममें और संत में फरक क्या है? हममें और गुरु में फरक क्या है? हम भी दिये हैं संत भी दिया है। हमारा शरीर भी एक दिया है उसमें मन की एक बाती है बस फरक इतना सा है कि प्रेम की आग नहीं जली है। हममें और संत में फरक क्या है हम भी दिये हैं संत भी दिया है बस संत जला हुआ दिया है हम बुझे हुए दिए हैं।
अपनी बाती को उसकी बाती से मिला लो यही सत्संग है। जब सारे दिये एक साथ जलेंगे तो मैं सत्य कहता हूँ जिस दिन तुम्हारे मन के दिये पर प्रेम की बाती जलपड़ी उस दिन बाहर की दुनिया भी ज्योतिर्मय हो जाएगी और अन्तरात्मा भी प्रकाशित हो जाएगी।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When our inner-self gets inspired then it invigorates the state of the mind to move towards spirituality. Every one by birth is born spiritual. The true nature or swaroop of man is ‘Sachhidananda’ or truth, consciousness and bliss but when we get inspired by a great personality or a pure soul then the inner-self gets empowered and automatically turns towards spirituality.
What is the difference between us and a saint? How are we different from our Guru? We are a lamp and the Saint is also a lamp! Our body is akin to the body of the lamp, our mind is the wick, the only difference is that the flame of Divine Love or Prema is not lighted as yet! Therefore, the difference between the Saints and us is that they are the lighted lamps whereas we are not lighted!
Just touch your wick to his, this is Satsang. When all the lamps will burn together, to tell you the truth, the day your lamp is lighted with the light of Prema, that the outside world as well as your inner-self, both will be enlightened!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||