श्री राधारमणो विजयते
गुरु की कृपा से निष्ठा की दृढ़ता मिलती है। ऐसा हमने भी अनुभव किया।
जैसे एक अविवाहित स्त्री या पुरुष प्रत्येक अविवाहित स्त्री या पुरुष में अपने पति या पत्नी की परिकल्पना करता है पर अगर कोई विवाहित हो जाए तो अब वह इस अवलोकन से इस प्रतिष्ठा से मुक्त हो जाएगा। बस ऐसा सा ही होता है कुछ
गुरु की कृपा से दृढ़ निष्ठा की प्राप्ति होती है। भरोसो दृढ़ इन चरणन केरो।।प्रहलाद भीड़ जाते हैं अपने पिता से गुरु के बल पर। ध्रुव चल देते हैं जंगल में गुरु के भरोसे।
रुक्मणी पूरे राज्य को ताक पर बिठाकर चिट्ठी भेज देती हैं श्रीकृष्ण को गुरु के भरोसे पर। पिता कह रहा है कि चोर है और सत्यभामा जी प्रस्ताव दे रही है कि विवाह कर दो।
भरोसो दृढ़ इन चरणन केरो।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
By the benevolence of our Sadguru, we are blessed with strong Nishtha or allegiance. This has been my personal experience!
Like, when an unmarried boy or a girl sees any single boy or girl, they imagine them to be their future companion but once they get married then their entire outlook changes. It is just something like this;
By Guru’s grace, one gets a very strong Nishtha. ‘Bharoso dridha innha charanan kero’||
Prahlad confronts his father, by the strength and his faith on his Guru. Dhruva goes away to the forest on the trust on his Guru.
Shree Rukminiji places the entire kingdom aside and sends the letter to Shree Krishna, only on her Guru’s faith! The father is saying that He is a thief wheras Shree Satyabhamaji is saying that since she is proposing, just go ahead and solemnize their marriage!
‘Bharoso dridha innha charanan kero’||
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
गुरुप्रसादेन श्रद्धाबलं लभते | अस्माभिः अपि एतत् अनुभवितम्।
यथा अविवाहिता वा पुरुषः प्रत्येकस्मिन् अविवाहितायां वा पुरुषे वा स्वपतिं वा पत्नीं वा कल्पयति, परन्तु यदि कश्चित् विवाहं करोति तर्हि इदानीं सः अनेन अवलोकनेन अस्मात् कीर्तितः मुक्तः भविष्यति। एतत् एवम् अस्ति
गुरुप्रसादात् प्रबलभक्तिं लभते | एतेषु दृढपादेषु विश्वासं कुर्वन्तु। प्रह्लादः पितुः गुरुबलेन जनसमूहं गच्छति। ध्रुवः स्वगुरुं विश्वासं कृत्वा वने गच्छति।
रुक्मणी सम्पूर्णं राज्यं सजगं कृत्वा स्वगुरुविश्वासेन श्रीकृष्णाय पत्रं प्रेषयति। पिता चोर इति वदति सत्यभामा जी विवाहं कर्तुं प्रस्तावति।
एतेषु पादेषु दृढतया विश्वासं कुर्वन्तु।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥