श्री राधारमणो विजयते
इस दुनिया में ये combination मिलना मुश्किल है या तो ऐसे लोग मिलते हैं जो सदाचारी है जो बिलकुल गड़बड़ नहीं करेंगे apical हैं values को मानते हैं, चोरी नहीं करेंगे, झूठ नहीं बोलेंगे। मतलब गुड कैरेक्टर। पर उसके साथ-साथ इतने बुद्धिजीवी अपने आप को मान लेते हैं कि उनके पास गुरु नहीं है। गुरु किसी को नहीं मानते ,खुद ही गुरु है।
या तो ऐसे लोग दुनिया में है और या ऐसे लोग दुनिया में है वो गुरु के लिए तो बहुत बड़ा फोटू लगाएँगे ड्राइंग रूम में घुसते ही सिर्फ गुरु गुरु। और दुनिया का कोई ऐसा उलटा काम नहीं है जो नहीं करता हो। सोचते हैं एक बार जाएँगे गुरुजी के पैर छुवेंगे, गुरुजी कहेंगे- तेरा भला हो। बस फिर कोई चिंता नहीं। सब गुरुजी करा रहे हैं शाम को पीकर घर आया और सोचता है ये गुरुजी को पिलाया।
ये दो स्वतंत्र लोग इस समय दुनिया में भरे हैं। या तो ऐसे हैं गुड कैरेक्टर। कुछ गलत काम नहीं। खाना पानी रहना सब अच्छा है। व्यवहार बढ़िया है पर उनको अपने जीवन में किसी मार्गदर्शक की कमी का अनुभव नहीं है उनको लगता है हमने ये सब पा लिया और या फिर
ऐसे हैं गुरु की भक्ति, एक घंटा पूजा करेंगे। अगरबत्ती खतम हो जाए पूजा खतम न हो। सब करेगा उसके बाद भी कैरेक्टर में कमी है। किसी को घुमाना हो एक मिनट टाइम नहीं लगेगा, झूठ बोलना हो एक मिनट टाइम न लगेगा, इधर- उधर खेल करना हो एक मिनट टाइम न लगेगा।
गुरु की भक्ति बहुत है पर भोजन की शुद्धता नहीं है। जब तक आहार शुद्ध नहीं होगा तब तक सदाचार कैसे होगा?
धर्म मन्दिर से शुरू नहीं होता, रसोई से शुरू होता है। हिन्दू उसको नहीं कहते जिसके घर में बड़ा मन्दिर हो, हिन्दू उसको कहते हैं जिसके घर में पवित्र रसोई हो। मन्दिर तो सबके घर में है। नास्तिक भी रख ही लेता है दो फोटू घर में। पर रसोई शुद्ध नहीं है।
गुरु है पर सदाचार नहीं है ऐसे सैकड़ों लोग हैं। गुरु निष्ठा पक्की है पर सदाचार नहीं है, सदाचार पक्का है तो गुरु निष्ठा नहीं है। रावण का गुरुभक्ति पक्की है पर सदाचार नहीं है।
एक व्यक्ति है जो सदाचारी है पर उसके पास सद्गुरु नहीं है दूसरा व्यक्ति है जिसके पास सद्गुरु तो है पर सदाचारी नहीं है। जिस दिन ये दोनों चीज पूरी मिल जाए गुरु भी सद्गुरु हो और शिष्य भी सदाचारी हो तब भगवान का प्राकट्य होता है। तब खम्बे से भगवान नृसिंह प्रगट हो जाते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
It is very difficult to get the right combination. Either, there are those who are righteous, do not indulge in any hanky panky, they are ethical and believe in values, they won’t steal or lie. In other words, people of good character. But, there are many intellectuals who don’t believe in Guru and feel that they are well equipped on their own. They consider themselves to be the Guru!
There are some who believe in the Guru and have a huge portrait put up in their drawing room as you enter and go on talking about the Guru at every step. They indulge in doing everything that is wrong or unethical. They think that they will go to see their Guru, touch his feet and Guruji will bless him saying, ‘Tera bhala ho’! Now, he has nothing to worry! He says that Guruji is doing everything, in the evening, he comes back drunk saying that he has offered wine to his Guru.
These are two types of people who abound the world, today! The one’s with a good character will not do anything wrong. There food habits, eating, drinking and lifestyle is impeccable. Their behavior is very good but somehow, they don’t feel the absence of any guide and feel that we have got everything or;
They just do Guru’s Bhakti and do Pooja for hours. The incense stick burns out but their Pooja continues. They will do everything but yet there is something lacking in their character. If they want to fool someone, it won’t take any time. He will lie at the drop of a hat or he won’t even bat an eyelid to take someone for a ride!
There is Guru Bhakti but no purity of food. If there is no purity of food, how can you expect righteousness?
Dharma doesn’t start from the temple, it starts from the kitchen. Hindu is not the one who has a big temple at home but it starts from a pure, holy kitchen. Everyone can have a temple! Even an atheist can have one or two pictures at home but the kitchen isn’t pure or clean.
Guru is there but sans any righteousness. There are thousands of such people. Their Guru Nishtha or trust is firm but they lack righteousness, or they are righteous but have no Guru Nishtha! Ravana’s Guru Nishtha is firm but he lacks righteousness.
There is one who is very righteous but has no Sadguru, on the other hand there is a Sadguru but lacks in righteousness! The day both these things come together, i.e. the Guru is the Sadguru and the the disciple is righteous then the Almighty appears! Like, Lord Narsingha appearing out of the pillar!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि भवन्तः श्री ठाकुरजी इत्यस्य पूर्णतया आनन्दं प्राप्तुम् इच्छन्ति तर्हि एकं वस्तु मनसि कृत्वा केवलं प्रेमीरूपेण तस्य दरबारं गच्छन्तु। यदि त्वं पतित्वेन गच्छसि तर्हि त्वं गमिष्यसि, यदि त्वं भार्यारूपेण गच्छसि तर्हि त्वं अपि गमिष्यसि।
भवन्तः किञ्चित्कालानन्तरं पुनः आगन्तुं अर्हन्ति, परन्तु कदाचित् भवन्तः स्वपत्न्याः पुरतः भ्रातृत्वस्य अभिनयं कुर्वन्ति तदा सम्बन्धः अम्लः भवति, कदाचित् भवन्तः कन्यायाः पुरतः अन्यत् किमपि भवन्ति तदा अव्यवस्थां जनयति। यदि त्वं मातुः पुरतः पुत्रः तिष्ठसि तर्हि तव गौरवं तिष्ठति ।
प्रत्येकं सम्बन्धे मित्रता भवति। यदि त्वं ईश्वरस्य पुरतः गच्छसि तर्हि आत्मा इव गच्छसि, यदि ब्रह्माग्रे गच्छसि तर्हि जीवरूपेण गच्छसि, यदि ईश्वरस्य पुरतः गच्छसि तर्हि भक्तरूपेण गच्छसि, यदि प्रियजनस्य पुरतः गच्छसि तर्हि अ प्रेमी । तदा भवन्तः तस्य पूर्णं रसं प्राप्नुयुः।
तावत्कालं यावत् श्रीठाकुरजीं विना अन्यः कोऽपि नासीत् अन्यत् किमपि नासीत्।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।