श्री राधारमणो विजयते
ऋषियों ने तपस्या करी कि भगवान में जो सदात्मकता है वो कैसी है? तब भगवान श्रीराम के रूप में प्रकट हो गए, ऋषियों ने तपस्या की कि भगवान में आनन्दात्मकता कितनी है? तब श्रीठाकुरजी श्रीकृष्ण लीला की स्थापना करते हैं तब ऋषियों ने तपस्या की कि उस परब्रह्म में चिदात्मकता कैसी है? चिन्मयता चैतन्यता कैसी है?
तब साक्षात् श्रीनदिया बिहारी श्रीमनमहाप्रभु प्रकट हुए। इसलिए श्रीमनमहाप्रभु का षड्भुज रूप सच्चिदानन्द स्वरूप ही है उसमें धनुषबाण भी है, उसमें वंशी भी है और उसमें दण्ड कमण्डलु भी है। सच्चिदानन्द रूपाय॥ इसलिए श्रीमनमहाप्रभु का वास्तविक स्वरूप साक्षात् भगवत् स्वरूप है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Rishis did Tapasya or penance to know the virtuousness of the Almighty. As a result, the Lord appeared as Shree Rama. The Rishis then wanted to know the Anand or the Bliss quotient of the Lord, for which He appeared as Shree Krishna and did the Leela. Furthermore, the Rishis got curious to know the ‘Chiddatma’ Tatva. What is Chinmayata or Chaitanyata?
As a result, ‘Nadiya Bihari’ Shreemann Mahaprabhuji appeared! That is why the, ‘Shaddbhuja’ or His six armed Swaroopa is the Sadchiddananda Swaroopa, holding the bow and arrows, the flute as well as the ‘Danda-Kamandala’. ‘Sadchiddananda Roopaaya’||
That is why Shreemann Mahaprabhuji’s Swaroopa is Bhagwatt Swaroopa!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||