कोई व्यक्ति सेवा कर रहा था, उसे देखकर अच्छा लगा पर जब इस बात का पता चला कि जिसके घर में 50 आदमी काम करने वाले हो, जिसके कमरे को तीन बार झाड़ने के लिए दो अलग लोग रहते हों, वो ठाकुर के दर की चौखट का मार्जन करने आए हैं। इस तत्व का उद्घाटन होते ही दृष्टि में एक अलग अनुभव हुआ, एक अलग आनंद आया, एक सम्मान का अनुभव हुआ।
ऐसे ही जब तत्व का उद्घाटन होता है तब रस की वृद्धि होती है। यह सिद्धांत है। जैसे तत्व का बोध होता है तो रस की वृद्धि प्रकट होती है उसी प्रकार
श्रीठाकुरजी के द्वारा माखन चोरी, गिरिराज उठाना, यह समझ लेना यह सारा कृत्य किसी असामान्य के द्वारा हुआ है। करना जिसके लिए अनिवार्य नहीं है। अबद्ध ब्रह्म यशोदा के हाथों बद्ध है।
ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भर छाछ पे नाच नचावे।।
ऐसा घर का सामान्य बालक भी कर सकता है। पर यहाँ यह आनंद बाल क्रीड़ा में तो है ही पर इस बात की कहीं न कहीं अनुभूति में भी है कि यह बाल क्रीड़ा कौन कह रहा है? जो जगत क्रीडा करता है।
इसलिए नंददासजी ने इसका उद्घाटन करने के लिए एक पद लिखा-
नंद भवन को भूषण माई।
यशोदा को लाल बीर हलधर को, राधारमण सदा सुखदायी।।
इंद्र को इंद्र देव देवन को, ब्रह्म को ब्रह्म महा बलदायी।
काल को काल ईश ईशन को, वरुण को वरुण महा बलजाइ।।
शिव को धन संतन को सर्वस्, महिमा वेद पुराणन गाई।
नंददास को जीवन गिरिधर, गोकुल मंडन कुँवर कन्हाई।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
One person was doing ‘Sewa’ and it was a pleasure to see him do it with such devotion. Later on, it was learnt that there are fifty people working in his household and there are two persons deputed just to clean his room three times a day, he is doing the sewa of washing and cleaning the doorway of Sri ‘Thakurji’s’ temple! The moment this fact was known, the entire perspective changed, a very different type of Anand enveloped the being and a feeling of utmost reverence towards him cropped up!
In the same way, when the Tatva is revealed or realised then there is an upsurge of Rasa. This is the principle. As you realise the truth, there is a simultaneous flood of Rasa. We need to understand that;
The ‘Maakhan-Chori-Leela’ and holding the ‘Giriraj’ on the little finger of Sri ‘Thakur’, etc, were not done by any ordinary person like you and me. Doing it was not at all compulsory for Him. An absolute independent authority i.e., Brahman is tied in the hands of Mata Yashoda.
‘Taahi aheer ki chhoharriyan chhachhiya bhar chhachh pe naach nachaavey |’
This can be done by any small child in our homes. Here, there is a divine Ananda in the ‘Bal-Leela’ but in some corner of our hearts we realise as to who is performing this Leela? The one who makes the world dance to His tunes!
That is why, ‘Sri Nanda Dasji’ wrote a Pada to express this fact –
‘Nanda Bhawan ko Bhushan Mai|
Yashoda ko Lal, Beer Hala Dhar ko, Radha Raman sada sukhdaayi||
Indra ko Indra Dev Devan ko, Brahma ko Brahman Maha baldaayi|
Kaal ko Kaal Eesh Eeshan ko, Varun ko Varun Maha baljaayi||
Shiva ko dhan santan ko sarbasa, mahima Veda Puraanan gaayi|
Nand Das ko Jeevan Giridhar, Gokul manddan Kunwar Kanai||
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||